● गीतासे गीतामें ●
~ पहले गीतासे गीतामें को समझते हैं ~
गीता पढ़ना , गीतासे है और इस पढ़ाईसे खोजकी जो प्यास उठती है वह यदि गीतामें अपनीं तृप्तिके तत्त्वको खोजती है तो उसे कहेंगे गीतामें ।
* गीता मात्र एक ऐसा माध्यम है जिसमें संदेह और भ्रम उठनें के श्रोत हैं और उनकी औषधि भी गीतामें कहीं न कहीं मिलती है । वह जो गीताका प्रेमी है , बुद्धिसे गीतामें प्रवेश करता तो है लेकिन धीरे -धीरे उसकी बुद्धि शांत होनें लगती है और ह्रदयका कपाट खुलनें लगता है ।
* दर्शनमें दो मार्ग हैं ; एक है मन -बुद्धि और दूसरा है हृदय । निश्चयात्मिका बुद्धि अर्थात ध्यान -बुद्धिसे ह्रदयका द्वार खुलता है और अनिश्चयात्मिका बुद्धि है भोग बुद्धि जो हृदय के द्वारको बंद रखती है और मैं और मेराके भावसे बाहर होनें नहीं देती ।
* गीता से गीता में पहुंचा कभीं गीतासे बाहर निकलता ही नहीं ..
और
* बुद्धि स्तर पर गीताको ऊपर - ऊपरसे देखनें वाला कभीं गीतामें प्रवेश करता ही नहीं ।
~~~ ॐ ~~~
Wednesday, October 2, 2013
गीता मोती -5
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