^^ आसक्तिके प्रति उठा होश मनुष्यके रुखको प्रभुकी ओर मोड़ देता है ।
** आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म्यता की सिद्धि मिलती है ।
** नैष्कर्म्यताकी सिद्धि ज्ञान योगकी परानिष्ठा है ।
** आसक्तिरहित कर्म समत्व योग है।
** समत्व योग वह दर्पण है जिस पर प्रभु दिखता है ।
** समत्व योग अभ्यास योगका फल है ।
** समत्व योग में कर्म अकर्म और अकर्म कर्म की तरह दिखते हैं ।यहाँ कर्म का अर्थ है भोग कर्म और अकर्म का अर्थ है वह कर्म जिसके करनें से अन्तः करण में परम प्रकाश के होनें का भाव भरता है ।
** अन्तः करण अर्थात मन ,बुद्धि और अहंकार ।
** अहंकार तीन प्रकारके हैं ; सात्त्विक ,राजस और तामस ।
** तामस अहंकार से महाभूतों और बिषयों का होना है , राजस अहंकार से इन्द्रियाँ हैं और सात्विक अहंकार से मन की रचना है ।
** मनुष्य के अन्दर गुण अप्रभावित मन ,चेतना और जीवात्मा - तीन ऐसे तत्त्व हैं जिनका सीधा सम्बन्ध हैं सात्विक गुण से ।
--- हरे कृष्ण ---
No comments:
Post a Comment