Thursday, December 24, 2015
Tuesday, December 22, 2015
Monday, November 30, 2015
Thursday, November 26, 2015
Saturday, November 14, 2015
जन्नत कहाँ है ?
जन्नत कहाँ है ?
♀ कुछ कहते हैं , माँ की गोदी में है
♀ कुछ कहते हैं , ऊपर आकाश में है
♀ कुछ कहते हैं ,जन्मभूमि ही जन्नत है
¶ इस सम्बन्ध में अनेक मत हैं पर जन्नत प्रभु भक्तिका ही सम्बोधन है
~~~ॐ ~~~
Thursday, November 12, 2015
Monday, September 21, 2015
गीता के मोती - 50
Saturday, September 5, 2015
गीता के मोती -49(मूल गीता क्या है ? )
श्रीमद्भगवद्गीता महाभारतका एक अंश और भारतके हर घर में मिलता है जबकि महाभारतकी गणना न तो पुराणों है न उपनिषदों में पर आदि शंकराचार्य जी गीताको महाभारतसे अलग गीतोपनिषद नाम जरूर दिया है। आदि शंकराचार्य जी भागवत पर नहीं पर गीताके श्लोकों पर अपनीं सोच ब्यक्त की है ।महाभारत पूर्ण रूपसे कहानियोंकी खान है और इस खानमें 700 श्लोकोंका गीता , हीरेकी तरह अपनीं चमकसे सबको आकर्षित करता ही है ।
महान वैज्ञानिक Prof. ALBERT EINSTEIN SAYS : "When I read Bhagavadgita and reflect about how god created this universe , everything else seems so superfluous . "
गीताके 700 श्लोकोंमें से कुछ ऐसे श्लोकों को एकत्रित करके मूल गीता नाम दिया जा रहा है जिनका सीधा सम्बन्ध है - कर्म , कर्मयोग , ज्ञानयोग और गुण - तत्वों से । मूल गीताका उद्देश्य है :--- इन्द्रिय ,विषय , मन , बुद्धि , अहंकार और गुण - तत्त्व जैसे आसक्ति , काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय एवं आलस्यके प्रति होश उठाना तथा इस होशके माध्यमसे अव्यक्तका द्रष्टा बनाना।
मूल गीता अभ्यास - योगसे उस सत्यका द्रष्टा बनाना चाहता है जिसके लिए मनुष्यकी योनि मिली हुयी है । ऐसा अवसर कई जन्मोंके बाद किसी को मिलता है । मूल - गीता वह अवसर है जो आपको योगी राज कृष्णसे एकत्व स्थापित करानें की ऊर्जा रखता है ।
~~ ॐ ~~
Friday, August 28, 2015
गीता के मोती -48
Thursday, August 20, 2015
Saturday, August 1, 2015
Friday, July 31, 2015
गीता के मोती - 45
कैसे मनुष्य स्वयं का मित्र और शत्रु होता है ?
इस प्रश्न का उत्तर मिलता है
तब
जब गीता के 700 श्लोकों की धाराओं में
तैरनें के बाद
समभाव स्थिति में मन - बुद्धि
पहुँचते हैं , तब ।।
~~ॐ ~~
Wednesday, July 29, 2015
Wednesday, June 3, 2015
गीता के मोती - 43
जन्म से जो कर्म मिला है ,
वह परिवर्तशील है
पर कर्म से जो जन्म मिला है ,
वह अपरिवर्तीय है।
Tuesday, June 2, 2015
गीता के मोती - 42
गीता : 9.7
सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम् ।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृनानि अहम् ।।
" कल्पके अंत में सभीं भूत मेरी प्रकृति में लीन हो जाते हैं । अगला कल्प जब प्रारम्भ होता है तब मैं पुनः सबको रचता हूँ "
* 04 प्रकारकी प्रलय भागवत बताता है : नित्य ,आत्यंतिक, नैमित्तिक और प्राकृतिक ।
** कल्पके अंत में नैमित्तिक प्रलय होती है । यह प्रलय ब्रह्माका एक दिन अर्थात एक कल्पका समय जब गुजर जाता है तब घटित होती है।
** ब्रह्माके एक दिन में 14 मनु होते हैं । वर्तमान समय में सातवें मनु श्राद्धदेव जी चल रहे हैं ।
**ब्रह्माकी उम्र 72000 कल्पोंकी होती है और एक कल्प 1000 चतुर्युगोंका होता है जबकि एक चतुर्युग 4,320,000 वर्षका होता है ।
~~ॐ ~~
Monday, April 20, 2015
गीतके मोती - 41
* कर्म - योग सूत्र *
# कर्म किये बिना कोई जीवधारी एक पल भी नहीं रह सकता ।
# हमारे सभीं कर्म मूलतः भोग होते हैं क्योंकि उनका आधार आसक्ति होती है ।
# कर्म दो प्रकारके होते हैं ; प्रबृत्ति परक और निबृत्ति परक ।
# प्रबृत्ति परक भोग से जोड़ता है और निबृत्ति परक योग कर्म होता है । # भोग कर्म में भोग - तत्त्वोंके प्रति होश उठाना कर्म योग साधना है ।
# सत्संगसे आसक्तिकी ऊर्जा रूपांतरित हो कर निर्विकार होती है ।
# आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म्यकी सिद्धि मिलती है जो पराभक्ति में पहुंचाती है ।
# पराभक्ति प्रभुसे एकत्व स्थापित करती है। ##प्रभुसे एकत्व स्थापित होते ही प्रभु और भक्त दो नहीं रह पाते , जो बचा रहता है वह प्रभु होता है ।
#ऐसा भक्त लोगोंके लिए होता है पर अपनें लिए नहीं होता । परा भक्तके लिए कड़ - कड़ प्रभुके रूप में दिखता है ।
~~ॐ ~~
Saturday, February 21, 2015
गीत के मोती -- 40
Tuesday, February 17, 2015
गीता के मोती - 39
* कान्हा )की बासुरी तो निरंतर बज रही है पर उसे सुननेंकी गहरी चाह किसको है ?
* कन्हैया ! मैं तो जो -जो लकीरें खीची , वे सारी की सारी गलत थी पर तुमनें उन्हें सही आकार देते
रहे ---
* जब सोचता हूँ कि पच्चास सालों में कितनी लकीरे खीची होगी , और कभीं यह सोच भी न उभड़ी कि आखिर यह मैं क्या कर रहा हूँ ?
* क्योंकि उस समय मेरे पास अहंकारकी कलम , मोहकी स्याही और कामनाका कागज़ जो था ।
* अब महसूस हो रहा है कि मैं क्या कर रहा था , क्या करना था और क्याकिया ?
* एक मैं था जो मैं और मेराके मद में डूबा उन लकीरों से बेहोशी में नर्क जानेंकी एक सकरी कांटो भरी गली बना रहा था और ---
* एक तूँ है कि उन टेढ़ी - मेढ़ी लकीरों से बन रही गली को स्वर्ग जानें का राज पथ बना दिया ? वाह ! , कान्हा वाह !
* हे मेरे कान्हा जी ! आपनें इतना सब कुछ मेरे लिए किया और मुझे भनक भी न लगनें दी ?
* कान्हाकी बासुरी तो निरंतर बज रही है लेकिन वह सुनाई उनको देती है जिनका मन संसारसे मुक्त और चेतनासे भर जाता है ।
* जहाँ कान्हा की बासुरी बजनी बंद हुयी , कल्प के अंत का घंटी बजनें लगेगी और नैमित्तिक प्रलय आ टपकेगी ।
~~~ ॐ ~~~
Thursday, January 1, 2015
गीता मोती - 38
Gateless gate -the Gita
* Yoga says : There are six layers of energy ; physical ,electrical , mental , emotional , intuitive and soul . Science can detect the first four . Brain - a component of mind , is a place where thaught- waves vibrate and infact brain is an electric field . Emotions are defined as energy in motion ie vibration . The wave -frequency of various emotions vary depending upon the nature of emotions . Love emotion has higher frequency than shame and guilt . Recent experiments in deep meditation show that a meditator having above 200,000 cycles/second subtle energy frequency , experiences the existence of God where as this frequency in ordinary man is about 350 cycles / second . A meditator when reaches deeper in meditation , and his subtle energy frequency crosses 200,000 cycles / second , he feels being out of his own body ,and this state is the gate of Samadhi .
~~ ॐ ~~