गीता सूत्र - 3.34
बिषय राग - द्वेष ऊर्जा से परिपूर्ण हैं
गीता सूत्र - 2.64
राग - द्वेष से अप्रभावित अनन्य भक्त होता है
पांच ज्ञानेन्द्रियाँ है और उनके अपनें - अपनें प्रकृति में स्थित बिषय हैं / गुण प्रभावित ब्यक्ति का मन उसकी इन्द्रियों का गुलाम होता है और उसकी बुद्धि उस के मन का गुलाम होती है / गुण प्रभावित ब्यक्ति अर्थात भोगी की इन्द्रियाँ बिषयों की तलाश में रहती हैं और जब किसी इंद्रिय को उसका बिषय मिल जाता है तब वह उसमे रमना चाहती है / बिषय में स्थित राग - द्वेष की ऊर्जा गुण प्रभावित के इंद्रिय को सम्मोहित कर लेती है / इंद्रिय से सम्मोहित इंद्रिय मन को अपनें बश में रखती है और वह मन बुद्धि को अपनें बश में रखता है , इस प्रकार उस ब्यक्ति के मन - बुद्धि क्षेत्र में अज्ञान सघन हो कर ज्ञान को ढक लेता है /
अनन्य भक्त वह है जो परमात्मा में बसा होता है
गुण , बिषय , इंद्रिय , मन एवं बुद्धि के आपसी सम्बन्ध को आप यहाँ देखे
अब समय है गीता के इन दो सूत्रों पर ध्यान करनें का ........
==== ओम् ======
बिषय राग - द्वेष ऊर्जा से परिपूर्ण हैं
गीता सूत्र - 2.64
राग - द्वेष से अप्रभावित अनन्य भक्त होता है
पांच ज्ञानेन्द्रियाँ है और उनके अपनें - अपनें प्रकृति में स्थित बिषय हैं / गुण प्रभावित ब्यक्ति का मन उसकी इन्द्रियों का गुलाम होता है और उसकी बुद्धि उस के मन का गुलाम होती है / गुण प्रभावित ब्यक्ति अर्थात भोगी की इन्द्रियाँ बिषयों की तलाश में रहती हैं और जब किसी इंद्रिय को उसका बिषय मिल जाता है तब वह उसमे रमना चाहती है / बिषय में स्थित राग - द्वेष की ऊर्जा गुण प्रभावित के इंद्रिय को सम्मोहित कर लेती है / इंद्रिय से सम्मोहित इंद्रिय मन को अपनें बश में रखती है और वह मन बुद्धि को अपनें बश में रखता है , इस प्रकार उस ब्यक्ति के मन - बुद्धि क्षेत्र में अज्ञान सघन हो कर ज्ञान को ढक लेता है /
अनन्य भक्त वह है जो परमात्मा में बसा होता है
गुण , बिषय , इंद्रिय , मन एवं बुद्धि के आपसी सम्बन्ध को आप यहाँ देखे
अब समय है गीता के इन दो सूत्रों पर ध्यान करनें का ........
==== ओम् ======
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