Monday, November 5, 2012

गीता की दो बूँदें

गीता सूत्र - 14.7
राग - रूप राजस गुण के तत्त्व हैं
गीता सूत्र - 2.65
राग - द्वेष रहित प्रभु - प्रसाद प्राप्त ब्यक्ति होता है
ऊपर के सूत्रों में तीन बातें हैं ------
 राजस गुण , राग - रूप एवं द्वेष ,
 आइये देखते हैं इन शब्दों को, गीता दृष्टि से ----
तीन गुण सात्त्विक , राजस एवं तामस प्रभु से हैं लेकिन प्रभु स्वयं गुणातीत है / सात्त्विक गुण में मन - बुद्धि संदेह रहित निर्मल संसार के द्रष्टा के रूप में होते हैं और राजस- तामस गुण संदेह युक्त बुद्धि रखते हैं / प्रभु की प्रीति में सात्त्विक गुण रखता है , भोग की ओर राजस गुण  सम्मोहित करता है और तामस गुण न सात्त्विक और न ही राजस की ओर रुख करनें देता /
 सात्त्विक गुण में समभाव  की स्थिति में मन - बुद्धि होते हैं , राजस गुण में अहँकार परिधि पर होता है और मनुष्य अपनें कद को खीच - खीच कर लंबा दिखाना चाहता है जबकी तामस गुण में मनुष्य सिकुड़ा हुआ होता है , भय में डूबा हुआ /
आसक्ति , काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय और अहँकार रहित सात्त्विक गुण धारी समयातीत आयाम में रहता हुआ भोग संसार का द्रष्टा बना  हुआ परम आनंद में मस्त रहता है /
==== ओम् ======= 

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