- मूल मंत्र का प्रारम्भ एक ओंकार से है और गायत्री का प्रारम्भ ॐ है
- एक ओंकार [ॐ] वेदों का आत्मा है और एक ओंकार श्री ग्रन्थ साहिब का आत्मा भी है
- मूल मंत्र आदि गुरु नानकजी साहिब के ह्रदय में भरे परम अब्यक्त भाव का वह अंश हैं जो आंशिक रूप से जपजी के नाम से ब्यक्त हो पाया है
- गायत्री ऋग्वेद में ऋषि विश्वामित्र रचित मन्त्र है
- मूल मंत्र को समझनें के लिए आदि गुरु जैसा ह्रदय चाहिये न की संदेह से भरी बुद्धि और गायत्री को समझनें के लिए विश्वामित्र जैसा ह्रदय
- मूल मंत्र गीता में परम श्री कृष्ण के उन पांच सौ बावन श्लोकों का सार है जिनको परम प्रभु अर्जुन को मोह मुक्त करानें के लिए बोलते हैंऔर जपजी के मूल मन्त्र में आदि गुरु श्री नानक जी साहिब वह परम अब्यक्त भावातीत भाव है जिमें वे जीवन भर बहते रहे=एक ओंकार
Monday, November 26, 2012
गायत्री और जपजी का मूल मन्त्र
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