योग और भोग
गीता [ श्लोक - 4.1 , 4.2 , 4.3 ] में प्रभु कहते हैं :
" मैं इस अबिनाशी योग को सूर्य को बताया था , सूर्य अपने पुत्र वैवस्वत मनु को बताया , मनु अपनें पुत्र इक्ष्वाकु को बताया , इस प्रकार परम्परागत यह योग राज ऋषियों तक पहुंचा लेकिन बाद में धीरे - धीरे लुप्त होता गया / तुम मेरा भक्त एवं सखा हो अतः आज मैं इस योग को तुमको बताया है " /यह बात द्वापर की है और प्रभु स्वयं कह रहे हैं और योग की शिक्षा अर्जुन को दे रहे हैं पर अर्जुन प्रभु की बात पर संदेह करते हैं , उनको विश्वास नहीं हो रहा और आज की स्थिति क्या है ? इस बात पर आप सोचो /
मनुष्य मात्र एक ऐसा जीव है जो योग - भोग के मध्य एक साधरण पेंडुलम की भांति घूम रहा है / मनुष्य को जब पता चलता है कि कोई योगी उसकी बस्ती में आया है तो तुरंत भागता है , उसकी ओर लेकिन जब वह वहाँ पहुँच जाता है तब भोग उसे वापिस खीचनें लगता है , उसे उस घडी तरह - तरह की बाटें याद आनें लगती हैं और वह फ़ौरन वहाँ से भागता है अपनें भोग कर्म की ओर /
मनुष्य का जीवन दो केन्द्रों वाला है ; एक मजबूत केंद्र है भोग और दूसरा कमजोर केंद्र है योग / ज्यामिति में ऎसी आकृति जिसके दो केंद्र हों उसे इलीप्स कहते हैं जो अंडाकार होता है / आप स्वयं को देखना ; जब आप पूजा में बैठते हैं तब आप को चैन नहीं , देह के उस भाग में खुजली होनें लगती है जहाँ पहले कभीं नहीं हुयी होती , परिवार के लोगों पर ऎसी साधारण सी बातों पर आप गर्म हो उठते हैं जिन पर पहले कभीं नहीं क्रोधित हुए होते , आखीर ऐसा क्यों होता है ?
योग का अर्थ है , प्रभु की ओर रुख करना
भोग का अर्थ है प्रभु को पीठ पीछे रखना और जो दिखे उसे बटोरना
गीता [ श्लोक - 2.69 ] में प्रभु कहते हैं :------
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमीयस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने :
" वह जो सब के लिए रात्रि सामान है , वह योगी को दिन सा दिखता है
और जो योगी को रात्रि सा दिखता है वह अन्य को दिन सा प्रतीत होता है "
भोगी और योगी की यह है परिभाषा /
सभीं जीव भोग योनि में हैं जो मात्रा भोग के लिएबनाए गए हैं ; भोग अर्थात काम और भोजन के लिए बनाए गए हैं लेकिन मनुष्य के सामनें जो दिखता है वह इस प्रकार है ----
- भोग से भोग में मनुष्य का अस्तित्व है
- भोग में होश बना कर योग में कदम रखना उसका मार्ग है
- योग में आखिरी श्वास भरते हुए परम पद की ओर चलना उसका आखिरी लक्ष्य है
- भोग एक माध्यम है जो योग में बदल जाता है और योग प्रभु को दिखाता है /
==== ओम् =====
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