गीता श्लोक - 13.13 + 13.14
सर्वतः पाणिपादं तत् सर्वतोऽक्षिशिरोमुखंसर्वतः श्रुतिमत् लोके सर्वं आवृत्य तिष्ठति
सर्व इन्द्रिय गुण आभासम् सर्वे इंद्रिय विवार्जितम्
असक्तं सर्वभूत् च एव निर्गुणं गुणभोक्तृ च
भावार्थ
वह संसार में सब को ब्याप्त करके स्थित है ---उसकी इन्द्रियाँ सर्वत्र हैं
वह इंद्रिय रहित है , लेकिन ----
सभीं इंद्रिय बिषयों को समझता है
वह आसक्ति रहित है , लेकिन ---
सबका धारण - पोषण कर्ता है
वह निर्गुण है , लेकिन ---
गुण भोक्ता है
गीता इन दो सूत्रों के माध्यम से निराकार को साकार माध्यम से इस सहज ढंग से स्पष्ट करता है जिससे इन दो सूत्रों पर मनन करनें वाले के अंदर :.......
निराकार
निर्गुण
की समझ जग उठे
गीत में प्रभु के 552 श्लोकों में आप को जो मिलेगा उसका सम्बन्ध ----
न्याय , मिमांस , भक्ति , वैशेषिक , योग एवं वेदान्त से गहरा है लेकिन इन सबको आओ एक साथ कैसे पकड़ सकते हैं , आप को सोचना होगा की आप इन में से किसको अपनाते हैं और एक बार बस एक बार जब आप का मार्ग तय हो जाएगा तब आप उस मार्क से जहाँ पहुंचेगे अन्य मार्गों से भी लोग वहीं पहुंचाते हैंजहाँ :----
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड उस एक के फैलाव स्वरुप दिखता है और वह ब्राह्मण के कण - कण में दिखनें लगता है पर आप इस अनुभूति को ब्यक्त न कर सकेंगे /
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