Sunday, September 29, 2013
तीन लोक कहा हैं ?
Sunday, September 22, 2013
गीता मोती - 4
● गीता - 4.38 ●
न हि ज्ञानेन सदृशं
पवित्रमिह विद्यते ।
तत्स्वयं योगसन्सिद्धम्
कालेन आत्मनि विन्दति ।।
" कर्म योग सिद्धिसे ज्ञानकी प्राप्ति होती है " " Karma Yoga is the source of wisdom"
* ज्ञान और विज्ञान को समझें :
कर्म योग एक सहज माध्यम है क्योंकि कोई भी जीव एक पल भी कर्म रहित नहीं रह सकता और कोई कर्म ऐसा नहीं जो दोष रहित हो । कर्म में उठा होश कर्म बंधनों से मुक्त करता है और कर्म बंधनों की कर्ममें अनुपस्थिति उस कर्मको कर्म योग बनाती है । आसक्ति रहित कर्म ज्ञान योगकी परानिष्ठा है ( गीता 18.48-18.49 ) ।
* कर्मका अनुभव जब कर्म-करता रूप में गुणों को देखता है तब वह अनुभव वैराज्ञ में ले जता है । वैराज्ञमें सम्पूर्ण के केंद्रके रूप में ब्रह्मकी अनुभूति ही विज्ञान है और वैराज्ञ ज्ञानका फल है । ज्ञान से विज्ञान में पंहुचा जाता है ।
~~~~ ॐ ~~~~
Wednesday, September 11, 2013
गीता मोती - 03
Monday, September 9, 2013
गीता मोती - 02
●● गीता श्लोक - 6.3 ●●
आरुरुक्षो : मुने : योगं कर्म कारणं उच्यते ।
योग रूढ़स्य तस्य एव शमः कारणं उच्यते ।।
" कर्मयोगमें आरूढ़ होनेंके लिए कर्म माध्यम है और कर्मयोगका लक्ष्य है बुद्धिका केंद्र प्रभु को बनाना ।"
" Action is the mean for Karma - Yoga . When he elevates in yoga , tranguality of mind becomes the mean of the realization of Consciousness "
** शम के लिए भागवत 11.19.36 देखें जहाँ शम मन -बुद्धि की वह स्थिति है जहाँ प्रभु इस तंत्रका केंद्र होता है ।
** गीतामें कृष्ण कह रहे हैं :-----
अर्जुन ! कर्म तो सभीं करते हैं ,बिना कर्म कोई जीवधारी एक पल नहीं होता लेकिन इनमें कर्म योगी हजारोंमें कोई एक हो सकता है । कर्म जब योगका माध्यम हो जाता है तब उस योगी की बुद्धिका केंद्र मैं हो जाता हूँ ।
°° बुद्धिमें जो उर्जा होगी , वह ब्यक्ति वैसा ही होगा । अर्थात - कृष्णमय होनेंमें कर्म आप की मदद कर सकता है ।
~~~ ॐ ~~~
Wednesday, September 4, 2013
गीताके मोती ( भाग - 01 )
●● गीताके मोती ( भाग - 01 ) ●●
1- गीता सूत्र - 2.60 > मन आसक्त इन्द्रियोंका गुलाम है ।
2- गीता सूत्र - 2.67 > प्रज्ञा आसक्त मन का गुलाम है ।
3- गीता सूत्र -3.6 > हठसे इन्द्रियोंका नियंत्रण करना दम्भी बनाता है ।
4- गीता सूत्र - 2.59 > इन्द्रियोंको हठात बिषयोंसे दूर रखनेंसे क्या होगा , मन तो बिषयोंका मनन करता ही रहेगा ।
5- गीता सूत्र -2.58 > इन्द्रियाँ ऐसे नियंत्रित होनी चाहिए जैसे कछुआ अपनें अंगो पर नियंत्रण रखता
है ।
6- गीता सूत्र -3.34 > सभीं बिषय राग -द्वेष की उर्जा रखते हैं ।
7- गीता सूत्र -3.7 > इन्द्रिय नियोजन मन से होना चाहिए ।
8- गीता सूत्र - 2.15+2.68 > इन्द्रिय नियोजनसे स्थिर प्रज्ञता मिलती है जो मोक्ष का द्वार है ।
9- गीता सूत्र - 2.55 > कामनारहित मन आत्मा केन्द्रित करता है ।
°° गीताके 10 श्लोक ध्यानके 09 सीढियोंको दिखा रहे हैं , गीता ध्यानकी यात्रा आपकी अपनी यात्रा है और कर्म - ज्ञान योगकी साधनाके ये मूल सूत्र हैं । आप इन सूत्रोंको अपना कर ध्यान में डूब सकते हैं । ~~~ ॐ~~~