●● गीता श्लोक - 6.3 ●●
आरुरुक्षो : मुने : योगं कर्म कारणं उच्यते ।
योग रूढ़स्य तस्य एव शमः कारणं उच्यते ।।
" कर्मयोगमें आरूढ़ होनेंके लिए कर्म माध्यम है और कर्मयोगका लक्ष्य है बुद्धिका केंद्र प्रभु को बनाना ।"
" Action is the mean for Karma - Yoga . When he elevates in yoga , tranguality of mind becomes the mean of the realization of Consciousness "
** शम के लिए भागवत 11.19.36 देखें जहाँ शम मन -बुद्धि की वह स्थिति है जहाँ प्रभु इस तंत्रका केंद्र होता है ।
** गीतामें कृष्ण कह रहे हैं :-----
अर्जुन ! कर्म तो सभीं करते हैं ,बिना कर्म कोई जीवधारी एक पल नहीं होता लेकिन इनमें कर्म योगी हजारोंमें कोई एक हो सकता है । कर्म जब योगका माध्यम हो जाता है तब उस योगी की बुद्धिका केंद्र मैं हो जाता हूँ ।
°° बुद्धिमें जो उर्जा होगी , वह ब्यक्ति वैसा ही होगा । अर्थात - कृष्णमय होनेंमें कर्म आप की मदद कर सकता है ।
~~~ ॐ ~~~
Monday, September 9, 2013
गीता मोती - 02
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