● गीता - 4.38 ●
न हि ज्ञानेन सदृशं
पवित्रमिह विद्यते ।
तत्स्वयं योगसन्सिद्धम्
कालेन आत्मनि विन्दति ।।
" कर्म योग सिद्धिसे ज्ञानकी प्राप्ति होती है " " Karma Yoga is the source of wisdom"
* ज्ञान और विज्ञान को समझें :
कर्म योग एक सहज माध्यम है क्योंकि कोई भी जीव एक पल भी कर्म रहित नहीं रह सकता और कोई कर्म ऐसा नहीं जो दोष रहित हो । कर्म में उठा होश कर्म बंधनों से मुक्त करता है और कर्म बंधनों की कर्ममें अनुपस्थिति उस कर्मको कर्म योग बनाती है । आसक्ति रहित कर्म ज्ञान योगकी परानिष्ठा है ( गीता 18.48-18.49 ) ।
* कर्मका अनुभव जब कर्म-करता रूप में गुणों को देखता है तब वह अनुभव वैराज्ञ में ले जता है । वैराज्ञमें सम्पूर्ण के केंद्रके रूप में ब्रह्मकी अनुभूति ही विज्ञान है और वैराज्ञ ज्ञानका फल है । ज्ञान से विज्ञान में पंहुचा जाता है ।
~~~~ ॐ ~~~~
Sunday, September 22, 2013
गीता मोती - 4
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