Tuesday, November 19, 2013

गीता मोती - 09

* गीता तत्त्व ज्ञान-1*
1- कर्मवासनाओंसे मुक्त कर्म , कर्मयोग है ।
2- आसक्ति ,कामना , क्रोध ,लोभ ,मोह ,भय , आलस्य और अहंकार ये आठ तत्त्व कर्म - वासना कहलाते हैं ।
3- प्रभुसे प्रभुमें माया है ।
4- तीन गुणोंका माध्यम माया है ।
5- तीन गुण कर्म -उर्जा देते हैं ।
6- गुण कर्म कर्ता हैं , कर्ता भावका उदय अहंकारकी छाया है ।
7- राजस गुण साधना -मार्गकी बड़ी रुकावट है । 8- तामस गुणमें अहंकार अन्दर सिकुड़ा होता है और इन्तजार करता रहता है ।
9- राजस गुणमें अहंकार बाहर होता है और दूरसे चमकता रहता है ।
10- कर्म योग ब्रह्मसे एकत्व स्थापित करता हैं । 11- कर्म योगी परा भक्त , स्थिर प्रज्ञ , ब्रह्म वित् होता है ।
12- दुःख संयोग वियोगः योगः ।
13- कर्म जव योग बन जाता है तब ज्ञानकी प्राप्ति होती है ।
14- ज्ञानमें क्षेत्र -क्षेत्रज्ञका बोध होता है ।
15- अनेक जन्मोंकी तपस्याओं का फल है ज्ञान । 16- ज्ञान समदर्शी -समभाव और द्रष्टा बनाता है । 17- ज्ञान और संदेह एक साथ नहीं रहते ।
18- ज्ञान अनन्य भक्ति पैदा करता है ।
19- वैराज्ञ ज्ञानकी पहचान है ।
20- भोग -तत्त्वोंके प्रभावोंकी अनुपस्थिति ,वैराज्ञ
है ।
~~ ॐ ~~

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