●गीता के मोती - 11 ●
* गीता श्लोक 6.11 से 6.20 तकके सार ।
** ध्यान वह मार्ग है जो मनको निर्मल करके ऐसे दर्पण जैसा बनता है जिसपर जो प्रतिबिंबित होता है वह परमात्मा होता है ।
* गीताके ऊपर संदर्भित श्लोकों के माध्यम से प्रभु अर्जुनको दो बातें बता रहे हैं - ध्यान करनें की विधि और ध्यानसे मिलनें वाली स्थिति ।
** ध्यान कैसे करें :
1- शुद्ध और समतल जगह पर कुशा या मृगछाल या कोई अन्य वस्त्र बिछा हो ।
2- कोई ऐसे आसनका चयन करें जिसमें बैठनें में कोई कठिनाई न हो ।
3- शरीर तनाव रहित पृथ्वी पर लम्बवत रहना चाहिए ( सीधी रेखा में ) ।
4- शरीर , इन्द्रियों और मनकी चालका दर्शक बनें । 5- नासिकाके अग्र भाग पर अपनी दृष्टि स्थिर रखें । 6- नासिका में आते -जाते श्वासोंके उस जगह पर उर्जा केन्द्रित करें जहां दोनों श्वासे मिलती हैं ।
7- अधिक भोजन करना ,या उपवास रखना ,अधिक निद्रा करना या निद्रा न करना ध्यान के लिए उपयुक्त नहीं ,सबकुछ सामान्य होना चाहिए ।
# जब यह अभ्यास योग पकेगा तब :--
* मन ऐसे शांत होगा जैसे वायु रहित स्थान में दीपक जी ज्योति स्थिर रहती है ।
* इन्द्रियाँ करता नहीं द्रष्टा बन जाती हैं ।
* सम्पूर्ण शरीर,इन्द्रियों ,मन और बुद्धि में जो ऊर्जा प्रवाहित हो रही होती है वह आत्माके माध्यम से परमात्माकी अनुभूति से गुजारती है और वह योगी :-* सम्पूर्ण ब्रह्माण्डको ब्रह्मके फैलाव स्वरुप देख कर धन्य हो जाता है ।।
~~ ॐ ~~
Thursday, November 28, 2013
गीताके मोती - 11
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