" युज्ज्जन् एवं सदा आत्मानं योगी नियतमानसा।
शांतिम् निर्वाण परमाम् मत्संस्थानाम् अधिगच्छति।।
~~ गीता - 6.15 ~~
गीताके माध्यम से प्रभु कृष्ण अशांत मन वाले अर्जुन को यह ध्यान मोती दे रहे हैं ।
" अर्जुन ! शांत और स्थिर मनवाला परम निर्वाण प्राप्त करता है। "
<> प्रभुका यह सूत्र कर्म -योग और ज्ञान-योगका संगम है <>
^^ चाहे आप सीधे बुद्धि माध्यम से ज्ञान -योग को अपनाएं या फिर अज्ञान मार्ग के कर्म -योग को अपनाएं दोनों मार्ग मन स्तर तक अलग -अलग से दिखते हैं और मन से आगे कर्म - योग यमुना नदी की तरह अपना नाम खो देता है और आगे जो धारा चलती है वह ज्ञान -मार्ग की गंगा की धारा होती है ।
<> भोग से भोग में हम सब हैं और भोग अज्ञानका संकेत है । अज्ञानको समझना ही ज्ञान है और यह काम सरल और सुलभ भी है ।
<> अज्ञानको बुझा हुआ दीपक समझें और इसकी ज्योति को प्रज्वलित होनें में इसका सहयोग करे । यह आपका सहयोग आपके मन से मैत्री स्थापित करा देगा और आपका रुख हो जाएगा नर्क की ओर से परम निर्वाणकी ओर ।।
~~ हरे कृष्ण ~~
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