Thursday, May 29, 2014

गीता अमृत ( आसक्ति भाग - 2 )

** आसक्ति ( Attachment ) भाग - 2
> गीता - 2.62-2.63 <
" प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को कर्म योग एवं ज्ञान योग के मूल सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए कह रहे हैं , हे अर्जुन ! सुनो , इन्द्रियों का स्वभाव है अपनें - अपनें बिषयों की तलाश करते रहना । जब पांच ज्ञान इन्द्रियों में किसी एक को उसका बिषय मिल जाता है तब उस बिषय पर उस ब्यक्ति का मन मनन प्रारम्भ कर देता
है । सभीं इन्द्रियों का आतंरिक छोर मन से जुड़ा है और बाहरी छोर प्रकृति में स्थित बिषय की तलाश करता है ।
* मन में जब मनन प्रारम्भ होता है तब मन को बुद्धि एवं अहंकार का सहयोग भी मिलता रहता है । मनन से उस बिषय को भोगनें की कामना उठनें लगती
है ।कामना राजस गुणका एक अहम तत्त्व है ।कामना टूटने पर वही कामना की उर्जा क्रोध में बदल जाती है और क्रोधमें बुद्धि अज्ञान से भर जाती है तथा क्रोध पाप का गर्भ है ।
* क्रोध अहंकारकी ऊर्जा के सहयोग से मनुष्यको पशु से भी नीचे की स्थिति में ला देता है और उस मनुष्यका नाश दिखनें लगता है।"
~~ हरे कृष्ण ~~

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