Tuesday, May 20, 2014

गीता अमृत (आसक्ति भाग -1 )

** गीता गुण तत्वों की पकड़ और भोग की गाठोंके प्रति होश उठाना चाहता है । गुण तत्वों की पकड़ को समझना कर्म -योग और ज्ञान - योग दोनों का प्रथम सोपान है । कर्म योग और ज्ञान योगका प्रारम्भिक केंद्र बुद्धि है और भक्तिका प्रारम्भिक केंद्र है ,हृदय । हृदय की दुर्बलताएं ही भोग की गाठें हैं जिनको भोग तत्त्व या गुण तत्त्व भी कहते हैं ।
* भोग की गाठों का सीधा सम्बन्ध है , मनकी बृत्तियों से । 10 इन्द्रियाँ , 05 तन्मात्र ( बिषय ) , 05 प्रकार के कर्म , स्थूल शरीर और अहंकार ये 22 तत्त्व मन की बृत्तियाँ हैं ।
* 10 इन्द्रियों ,मन ,05 बिषय और तीन प्रकार के अहंकारों , उनकी गति और स्वभाव को समझना कर्म -योग एवं ज्ञान - योग के प्रारम्भिक चरण हैं जो अभ्यास -योग से मिलता है ।अभ्यास - योग में शरीर ,खान -पान , नीद , जागना , उठना ,बैठना , संगति , भाषा एवं अन्य तत्वोंके प्रति होशमय रहते हुए उनको नियंत्रण में रखना होता है ।
** अभ्यास -योग का सीधा सम्बन्ध है , पांच ज्ञान इन्द्रियों और उनके बिषयों के सम्बन्ध से । इन्द्रिय -बिषय संयोग यदि गुण तत्वों के प्रभाव में होता है तब उस बिषय के प्रति मन में आसक्ति उठती है और आसक्ति मनकी वह उर्जा है जो योग से सीधे भोग में वापिस ला देती हैं ।
● शेष अगले अंक में ●
~~ हरे कृष्ण ~~

No comments:

Post a Comment

Followers