Sunday, July 27, 2014
गीता के मोती - 29 ( भाग - 3 )
गीता अध्याय - 1 ( भाग - 3 )
# धृतराष्ट्र कुरुक्षेत्र को धर्म क्षेत्र क्यों कह रहे हैं ?
1- धृतराष्ट्र के लिए न तो यह युद्ध धर्म युद्ध है ...
2- न कृष्ण उनके लिए परमात्मा हैं ...
3- अगर गीता - ज्ञानका क्षेत्र होनें के कारण यह धर्म क्षेत्र है तो ----
* अभीं गीता गर्भ में है , उस समय कौन जनता था कि यह युद्धका अवसर गीता की जननी बननें वाला है ।
** धृतराष्ट्र केलिए युद्ध पूर्व न तो गीता का कोई महत्व है न कृष्णकी कोई भक्ति है ---
°° फिर धृतराष्ट्र क्यों कुरुक्षेत्रको धर्म क्षेत्र कह रहे
हैं ?
# अब आगे #
^ आज जिसको कुरुक्षेत्र कहा जा रहा है वह प्राचीन थानेसर बस्ती है । 1970 में जब कुरुक्षेत्र नाम का नया जिला बना तब से थानेसर शब्द मिटने लगा और कुरुक्षेत्र शब्द चमकनें लगा ।भारत पाकिस्थान बटवारे से पूर्व यह बस्ती एक गाँव जैसी थी लेकिन जब यहाँ पाकिस्तान से आकर पंजाबी बस गुए ,यस बस्ती बिकसित होनें लगी ।
^ आज का कुरुक्षेत्र प्राचीन कुरु - क्षेत्र का पूर्वी किनारा है । गंगा -यमुना के मध्य का भाग कुरु राष्ट्र कहलाता था जहाँ आबादी थी । यमुना - सरस्वती के मध्यका भाग जिसमें उत्तर -दक्षिण हरियाणाका सारा भू भाग सामिल था और जहाँ आबादी न के बराबर थी और जो थी वह जंगल में रहनें वाले नागा और तक्षक प्रजाति के आदिबासी लोग थे ,इस भू भाग को कुरुक्षेत्र कहते थे ।
उत्तर कुरु मंगोलिया से उत्तर में साइबेरिया से आगे समुद्र तक फैला था ( यह भूगोल भागवत स्कन्ध - 5 में दिया गया है ) ।
<> आगे कुरुक्षेत्र के सम्बन्ध में अगले अंक में <>
~~ ॐ ~~
Friday, July 25, 2014
गीता के मोती - 28
● गीता अध्याय - 1 सार (भाग - 2 )●
<> गीताके प्रारम्भ में धृतराष्ट्र अपनें सहयोगी संजय से
पूछ रहे हैं :---
" धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवा : च एव किम् अकुर्वत संजय ।।"
" हे संजय धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा वाले एकत्रित मेरे पुत्र और पाण्डव क्या किये ? "
<> हस्तिनापुरके अंधे सम्राट धृतराष्ट्र ,कौरवों के पिता युद्धक्षेत्रके अपनें सिविर में संजयके साथ उपस्थित हैं और जब उनको यह आभाष हुआ कि युद्ध अभीं प्रारम्भ नहीं हुआ तब उनसे रहा न गया और पूछ ही बैठे की हे संजय ! युद्धकी इच्छा वाले मेरे और पाण्डुके पुत्रोंनें क्या किया ? धृतराष्ट्र युद्ध प्रारम्भ होनें के बिलम्ब को लेकर जो जिज्ञासा दिखा रहे हैं ,वह उनके अस्थिर अन्तः करणका प्रतिबिम्ब है ।
**यहाँ कुछ बातें समझते हैं :---
1- कुरुक्षेत्र एक क्षेत्र है जहाँ महाभारत युद्ध प्रारम्भ होनें वाला है ,दोनों पक्षकी सेनायें आमनें -सामनें पूरी तैयारीके साथ खड़ी हैं । कुरुक्षेत्र कोई बस्ती नहीं ,यह एक निर्जन क्षेत्र था जिससे सरस्वती नदी बहती थी । कुरुक्षेत्र में सरस्वती तट पर पुरुरवा और उर्बशी का मिलन हुआ था । पुरुरवाके ही बंशज यदु , हस्ती , कुरु , कौरव और पांडव आदि थे ।
2- कुरुक्षेत्रको धृतराष्ट्र धर्म क्षेत्र कह रहे हैं , यह एक सोचका बिषय है ।
^^अब गीता से हट कर भागवत के आधार पर कुछ बातें , जिनका सम्बन्ध इस श्लोक से है ।
* भागवत : 12.1-12.2 >
# महाभारत युद्ध 1437 B.C. के आसपास हुआ होगा क्योंकि परीक्षितके जन्म से क्राइस्ट एरा प्रारंभ होनें तक का समय भागवत में यही दिया गया है और परिक्षितका जन्म ठीक युद्धके बाद हुआ था ।
* महाभारत युद्ध में 07 अक्षौहिणी सेना पांडव पक्ष की थी और 11 अक्षौहिणी सेना कौरव पक्ष की थी।
* एक अक्षौहिणी सेना = 218 ,700 सैनिक।
* 18 दिन के युद्ध में कुल 29,36,600 लोग मारे गए अर्थात 1,63 ,145 लोग रोजाना मर रहे थे ।
* पांडव सेना सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर रुकी हुयी थी ।
** आगे की चर्चा अगले अंक में ,आज इतना ही **
~~ ॐ ~~
Thursday, July 24, 2014
गीता के मोती - 27
● गीता अध्याय - 01 का सार भाग - 1 ●
<> अध्याय - 1 में कुल 47 श्लोक हैं जिनमें प्रारम्भिक श्लोक धृतराष्ट्र जी का है , प्रभु इस अध्याय में चुप रहते हैं और 23-23 श्लोक अर्जुन एवं संजय के हैं ।
** इस अध्याय में बुद्धि - योग आधारित ध्यानके चार बिषय
हैं ।
1- श्लोक : 1.1- धृतराष्ट्र जी का एक मात्र श्लोक ।
2- श्लोक : 1.23-1.24 - अर्जुनके रथ को दोनों सेनाओंके मध्य भीष्म एवं द्रोणाचार्य के सामनें
लेजाना ।
3- अर्जुन के श्लोक : 1.28- 1.31तक - जिनका सम्बन्ध मोहके लक्षणों से है ।
4- प्रभु का चुप रहना - एक अन्दर - बाहर से चुप ब्यक्ति ही सत को देखता है ।
# इस अध्याह की आगे की चर्चा अगले अंक में देख सकते हैं।
~~ ॐ ~~
Tuesday, July 22, 2014
गीता के मोती - 26
<> परम पद क्या है ?
" अब्यक्त अक्षरः इति उक्तः
तम् आहु : परमाम् गतिम् ।
यम् प्राप्य न निवर्तन्ते
तत् धाम परमम् मम ।।"
~~ गीता - 8.21 ~~
# जिसे अब्यक ,अक्षर ,परम गति कहते हैं ....
# जिसकी प्राप्ति आवागमन से मुक्त करती है ...
# उसे प्रभुका परम धाम कहते हैं , यह बात गीताका ऊपर दिया गया सूत्र कह रहा है ।ध्यान से यदि इस सूत्र में प्रवेश करें तो आप देखेंगे कि यहाँ :---
<> अब्यक्तको ब्यक्त करनें की कोशिश की जा रही है।
अब आगे :---
* Lotzu कहते हैं ," सत्य एक अनुभूति है जो ब्यक्त करनें पर असत्य हो जाता है "
* शांडिल्य कहते हैं , सत्य अब्यक्तातीत है पर उसकी ओर इशारा किया जा सकता है और यहाँ गीता में प्रभु कृष्ण इशारा कर रहे हैं कि हे अर्जुन ! होश में आ और देख तुम्हें ऐसा मौका फिर कब मिलनें वाला है ?
●वह जिसकी प्राप्ति उपनिषद् नेति -नेति के माध्यम से कराते हैं -● वह जिसे कर्म योगी द्रष्टा के रूप में देखता है ---
● वह जिसे ध्यानी परम शून्यता के रूप में देखता है-
●मीरा- चैतन्य जैसे परा भक्त साकारके माध्यम से निराकारमें स्वयं को खोकर देखते हैं ---
● वेद पाठी जिसे ॐ में सुनते हैं ..
** वह मन बुद्धि से परे की अनुभूति का नाम है परमपद जिसमें वह पहुँचता जो फिर दुबारा जन्म नहीं लेता ,
इसे कबीर कहते हैं ----
" बूँद समानी समुद्र में --- "
~~ ॐ ~~
Tuesday, July 15, 2014
गीता के मोती - 25
गीता - सन्दर्भ : 11.50 + 18.74 + 18.75 #
** ये तीनों श्लोक संजय कह रहे हैं **
* गीता अध्याय - 11 में कुल 55 श्लोकों में अर्जुन के 33 श्लोकों से तीन प्रश्न उठते हैं । अर्जुन एक तरफ यह भी कहते हैं कि अब मेरा संदेह -मोह समाप्त हो चुका है और साथ में दूसरी तरफ प्रश्न भी पूछते हैं । जबतक बुद्धि संदेह -अहंकार रहित है तबतक प्रश्नका उठना संभव नहीं । प्रश्न उठते हैं संदेह - अहंकार से या दोनों के सहयोग से ।
* अर्जुन प्रभुके चतुर्भुज रूप को देखते हैं । प्रभु अपनें चतुर्भुज रूप को दिखाते हैं और अपनें चतुर्भुज रूपसे सामान्य रूपमें आकर अर्जुन को आश्वासन देते हैं । अर्जुनकहते हैं : हे अच्युत ! अब मैं आपके प्रसादरूप में अपनी खोई स्मृति वापिस पा ली है और संदेहमुक्त स्थिति में आपके बचनोंका पालन करनें को तौयार
हूँ ।
* अर्जुनकी इन बचानो को सुन कर संजय धृतराष्ट्रको बता रहे है कि ' महात्मा ' अर्जुन के इस प्रकार रोमांचित वचनों को मैं सूना
हूँ ।
# गीता में अर्जुनके 16 प्रश्न 86 श्लोकोंके माध्यमसे हैं और इन प्रश्नोंके सन्दर्भमें प्रभु 574 श्लोकोंको बोलते
हैं ।
# जहाँ परम प्रभु परमानन्द श्री कृष्णका सत्संग हो ।
# जहाँ सांख्य-योग सत्संग का माध्यम हो ।
<> उस ऊर्जा - क्षेत्रमें जो श्रोतापन को प्राप्त हो
गया ,वह तो महात्मा ही होगा <>
<> श्रोतापन अर्थात प्रभु श्री कृष्ण से एकत्व स्थापित करना । जहाँ माया ब्रह्म में समा जाती है वहाँ जो होता है वह ब्रह्म ही होता है अतः परम श्रोता बननें के बाद लोगों के लिए अर्जुन हैं लेकिन अर्जुन केलिए अर्जुन कहाँ हैं ?
# परा भक्तिका भक्त ,परम श्रोता , महारास का नर्तक या
नर्तिकी ,वेद मन्त्रोंका परम पाठी अपनें लिए नहीं होते , लोगों केलिये होते हैं वे तो उस उर्जा में निराकार ब्रह्मके साकार रूप होते हैं , जो उनके इस रूप को पा लिया ,वह भी ब्रह्मवित् हो गया ।।
~~ हरे कृष्ण ~~
Friday, July 11, 2014
गीता के मोती - 24
# साकार में निराकार #
* गीता अपनें 13 अध्यायों में 123 श्लोकों के 309 साकार उदाहरणों के माध्यम से निराकार कृष्ण की एक झलक दिखाना चाहता है । एक हम हैं कि इस उपनिषद को पढ़ना तो दूर रहा इसे एक सड़े हुए कभीं न धुले हुए लाल कपडे में बाध कर ऊपर कहीं ताख पर ऐसे रखते हैं कि कहीं भूल कर भी इस पर हमारी नज़र न पड़े ।हम भी धन्य ही हैं ?
* ऐसे लोग धन्य हैं और दूर्लभ भी जो गीता में अपना बसेरा बनाया हुआ है । गीता सबकी स्मृति में है लेकिन उसे ढक कर रखा गया है । गीता की स्मृति परदे के बाहर तब आती है जब कोई आखिरी श्वास भर रहा होता है ।जब परिवार में किसी को मौत अर्ध बेहोशी में ले गयी होती है , वह मुश्किल से किसी एकाध को पहचाननें में सफल होता है , चम्मच से भी गंगा जल पीनें में असफल रहता है और जब हमें ऐसा पूरा यकीन हो जाता है कि अब ये बचनें वाले नहीं तब हम उनके अपनें उनको गीता सुनाते हैं जिससे उनकी मुक्ति हो जाए ।
* ऐसे लोग जिनकी आँखें जीवन भर दूसरों पर टिकी रही,अंत समय में कैसे प्रभु को अपनें में धारण
करेंगी ? लेकिन हमारी गणित गीता की गणित से एक दम भिन्न है , हमारी गणित नें चित भी मेरा और पट बी मेरा होता है ।
* गीता कहता है , जिस ब्यक्तिमें जो भाव उसके जीवन भर छाया रहता है , अंत समय में भी वही भाव उसे भावित करता है और अंत समय का गहरा भाव उस आखिरी श्वास भर रहे ब्यक्ति के अगले योनि को निर्धारित करता है क्योंकि देह त्याग कर जाते हुए आत्मा के साथ इन्द्रियों सहित मन भी रहता है ।
* मन हमारी स्मृतियों का संगहालय है और सघन स्मृति उसे गति में रखती है ।
* कपिल मुनि अपनी माँ को सांख्य - योग का ग्यासं देते समय कहते हैं : मन विकारों का पुंज है और बंधन एवं मोक्ष का माध्यम भी है ।
* ऐसे लोग दुर्लभ हैं जो जीवन भर भोग - वासना में डूबे रहे हों , अंत समय में प्रभुको याद किया हो और प्रभु उनको मुक्ति दिया
हो ।
* गीता कहानियों के आधार पर सत्य की खिड़की नहीं खोलना चाहता जैसे पुराण करते हैं , गीता एक सहज मार्ग दिखता है
जो :---
# साकार भक्ति से निराकार भक्ति में
# अपरा भक्ति से परा भक्ति में
# परा भक्ति में ज्ञान माध्यम से
# वैराज्ञमें पहुँचाता है और इशारा करता है
# कि देख इस पार को जो प्रभु का आयाम है ।।
<> साकार से निराकार , माया से मायापति और गुणों से निर्गुण की यात्रा का नाम है ---
" श्रोमद्भागवत गीता "
~~ ॐ ~~
Tuesday, July 8, 2014
गीता एक माध्यम है
# साकार में निराकार #
* गीता अपनें 13 अध्यायों में 123 श्लोकों के 309 साकार उदाहरणों के माध्यम से निराकार कृष्ण की एक झलक दिखाना चाहता है । एक हम हैं कि इस उपनिषद को पढ़ना तो दूर रहा इसे एक सड़े हुए कभीं न धुले हुए लाल कपडे में बाध कर ऊपर कहीं ताख पर ऐसे रखते हैं कि कहीं भूल कर भी इस पर हमारी नज़र न पड़े ।हम भी धन्य ही हैं ?
* ऐसे लोग धन्य हैं और दूर्लभ भी जो गीता में अपना बसेरा बनाया हुआ है । गीता सबकी स्मृति में है लेकिन उसे ढक कर रखा गया है । गीता की स्मृति परदे के बाहर तब आती है जब कोई आखिरी श्वास भर रहा होता है ।जब परिवार में किसी को मौत अर्ध बेहोशी में ले गयी होती है , वह मुश्किल से किसी एकाध को पहचाननें में सफल होता है , चम्मच से भी गंगा जल पीनें में असफल रहता है और जब हमें ऐसा पूरा यकीन हो जाता है कि अब ये बचनें वाले नहीं तब हम उनके अपनें उनको गीता सुनाते हैं जिससे उनकी मुक्ति हो जाए ।
* ऐसे लोग जिनकी आँखें जीवन भर दूसरों पर टिकी रही,अंत समय में कैसे प्रभु को अपनें में धारण
करेंगी ? लेकिन हमारी गणित गीता की गणित से एक दम भिन्न है , हमारी गणित नें चित भी मेरा और पट बी मेरा होता है ।
* गीता कहता है , जिस ब्यक्तिमें जो भाव उसके जीवन भर छाया रहता है , अंत समय में भी वही भाव उसे भावित करता है और अंत समय का गहरा भाव उस आखिरी श्वास भर रहे ब्यक्ति के अगले योनि को निर्धारित करता है क्योंकि देह त्याग कर जाते हुए आत्मा के साथ इन्द्रियों सहित मन भी रहता है ।
* मन हमारी स्मृतियों का संगहालय है और सघन स्मृति उसे गति में रखती है ।
* कपिल मुनि अपनी माँ को सांख्य - योग का ग्यासं देते समय कहते हैं : मन विकारों का पुंज है और बंधन एवं मोक्ष का माध्यम भी है ।
* ऐसे लोग दुर्लभ हैं जो जीवन भर भोग - वासना में डूबे रहे हों , अंत समय में प्रभुको याद किया हो और प्रभु उनको मुक्ति दिया
हो ।
* गीता कहानियों के आधार पर सत्य की खिड़की नहीं खोलना चाहता जैसे पुराण करते हैं , गीता एक सहज मार्ग दिखता है
जो :---
# साकार भक्ति से निराकार भक्ति में
# अपरा भक्ति से परा भक्ति में
# परा भक्ति में ज्ञान माध्यम से
# वैराज्ञमें पहुँचाता है और इशारा करता है
# कि देख इस पार को जो प्रभु का आयाम है ।।
<> साकार से निराकार , माया से मायापति और गुणों से निर्गुण की यात्रा का नाम है ---
" श्रोमद्भागवत गीता "
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