Friday, July 25, 2014

गीता के मोती - 28

● गीता अध्याय - 1 सार (भाग - 2 )● 
<> गीताके प्रारम्भ में धृतराष्ट्र अपनें सहयोगी संजय से
 पूछ रहे हैं :--- 
" धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः । 
मामकाः पाण्डवा : च एव किम् अकुर्वत संजय ।।"
 " हे संजय धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा वाले एकत्रित मेरे पुत्र और पाण्डव क्या किये ? " 
<> हस्तिनापुरके अंधे सम्राट धृतराष्ट्र ,कौरवों के पिता युद्धक्षेत्रके अपनें सिविर में संजयके साथ उपस्थित हैं और जब उनको यह आभाष हुआ कि युद्ध अभीं प्रारम्भ नहीं हुआ तब उनसे रहा न गया और पूछ ही बैठे की हे संजय ! युद्धकी इच्छा वाले मेरे और पाण्डुके पुत्रोंनें क्या किया ? धृतराष्ट्र युद्ध प्रारम्भ होनें के बिलम्ब को लेकर जो जिज्ञासा दिखा रहे हैं ,वह उनके अस्थिर अन्तः करणका प्रतिबिम्ब है । 
**यहाँ कुछ बातें समझते हैं :---
 1- कुरुक्षेत्र एक क्षेत्र है जहाँ महाभारत युद्ध प्रारम्भ होनें वाला है ,दोनों पक्षकी सेनायें आमनें -सामनें पूरी तैयारीके साथ खड़ी हैं । कुरुक्षेत्र कोई बस्ती नहीं ,यह एक निर्जन क्षेत्र था जिससे सरस्वती नदी बहती थी । कुरुक्षेत्र में सरस्वती तट पर पुरुरवा और उर्बशी का मिलन हुआ था । पुरुरवाके ही बंशज यदु , हस्ती , कुरु , कौरव और पांडव आदि थे ।
 2- कुरुक्षेत्रको धृतराष्ट्र धर्म क्षेत्र कह रहे हैं , यह एक सोचका बिषय है । 
^^अब गीता से हट कर भागवत के आधार पर कुछ बातें , जिनका सम्बन्ध इस श्लोक से है । 
* भागवत : 12.1-12.2 >
#  महाभारत युद्ध 1437 B.C. के आसपास हुआ होगा क्योंकि परीक्षितके जन्म से क्राइस्ट एरा प्रारंभ होनें तक का समय भागवत में यही दिया गया है और परिक्षितका जन्म ठीक युद्धके बाद हुआ था । 
* महाभारत युद्ध में 07 अक्षौहिणी सेना पांडव पक्ष की थी और 11 अक्षौहिणी सेना कौरव पक्ष की थी।
 * एक अक्षौहिणी सेना = 218 ,700 सैनिक।
 * 18 दिन के युद्ध में कुल 29,36,600 लोग मारे गए अर्थात 1,63 ,145 लोग रोजाना मर रहे थे ।
 * पांडव सेना सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर रुकी हुयी थी । ** आगे की चर्चा अगले अंक में ,आज इतना ही ** 
~~ ॐ ~~

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