* गीता अपनें 13 अध्यायों में 123 श्लोकों के 309 साकार उदाहरणों के माध्यम से निराकार कृष्ण की एक झलक दिखाना चाहता है । एक हम हैं कि इस उपनिषद को पढ़ना तो दूर रहा इसे एक सड़े हुए कभीं न धुले हुए लाल कपडे में बाध कर ऊपर कहीं ताख पर ऐसे रखते हैं कि कहीं भूल कर भी इस पर हमारी नज़र न पड़े ।हम भी धन्य ही हैं ?
* ऐसे लोग धन्य हैं और दूर्लभ भी जो गीता में अपना बसेरा बनाया हुआ है । गीता सबकी स्मृति में है लेकिन उसे ढक कर रखा गया है । गीता की स्मृति परदे के बाहर तब आती है जब कोई आखिरी श्वास भर रहा होता है ।जब परिवार में किसी को मौत अर्ध बेहोशी में ले गयी होती है , वह मुश्किल से किसी एकाध को पहचाननें में सफल होता है , चम्मच से भी गंगा जल पीनें में असफल रहता है और जब हमें ऐसा पूरा यकीन हो जाता है कि अब ये बचनें वाले नहीं तब हम उनके अपनें उनको गीता सुनाते हैं जिससे उनकी मुक्ति हो जाए ।
* ऐसे लोग जिनकी आँखें जीवन भर दूसरों पर टिकी रही,अंत समय में कैसे प्रभु को अपनें में धारण
करेंगी ? लेकिन हमारी गणित गीता की गणित से एक दम भिन्न है , हमारी गणित नें चित भी मेरा और पट बी मेरा होता है ।
* गीता कहता है , जिस ब्यक्तिमें जो भाव उसके जीवन भर छाया रहता है , अंत समय में भी वही भाव उसे भावित करता है और अंत समय का गहरा भाव उस आखिरी श्वास भर रहे ब्यक्ति के अगले योनि को निर्धारित करता है क्योंकि देह त्याग कर जाते हुए आत्मा के साथ इन्द्रियों सहित मन भी रहता है ।
* मन हमारी स्मृतियों का संगहालय है और सघन स्मृति उसे गति में रखती है ।
* कपिल मुनि अपनी माँ को सांख्य - योग का ग्यासं देते समय कहते हैं : मन विकारों का पुंज है और बंधन एवं मोक्ष का माध्यम भी है ।
* ऐसे लोग दुर्लभ हैं जो जीवन भर भोग - वासना में डूबे रहे हों , अंत समय में प्रभुको याद किया हो और प्रभु उनको मुक्ति दिया
हो ।
* गीता कहानियों के आधार पर सत्य की खिड़की नहीं खोलना चाहता जैसे पुराण करते हैं , गीता एक सहज मार्ग दिखता है
जो :---
# साकार भक्ति से निराकार भक्ति में
# अपरा भक्ति से परा भक्ति में
# परा भक्ति में ज्ञान माध्यम से
# वैराज्ञमें पहुँचाता है और इशारा करता है
# कि देख इस पार को जो प्रभु का आयाम है ।।
<> साकार से निराकार , माया से मायापति और गुणों से निर्गुण की यात्रा का नाम है ---
" श्रोमद्भागवत गीता "
~~ ॐ ~~
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