गीता अध्याय - 2 में स्थिर प्रज्ञ की पहचान बता रहे हैं , प्रभु श्री । इस कड़ी का शेष भाग आप यहाँ देख सकते हैं । ध्यान रहे कि मन - बुद्धि से परे की अनुभूति केवल स्थिर प्रज्ञ को होती है क्योंकि उसका चित्त पारिजात मणि जैसा पारदर्शी , शांत और निर्मल होता है 👇
Tuesday, March 30, 2021
Saturday, March 27, 2021
गीता का स्थिरप्रज्ञ कौन है ?
श्रीमद्भगवद्गीत अध्याय : 2 श्लोक 54 - 72 तक , स्थिरप्रज्ञ योगी की पहचान से सम्बंधित हैं। प्रभु श्री कृष्ण के लिए महाभारत युद्ध एक प्रयोगशाला जैसा है । युद्ध को एक सुअवसर के रूप में प्रभु श्री देख रहे है । महाभारत युद्ध के माध्यम से भोग से योग में और योग में अपरा वैराग्य तथा अपरा वैराग्य से परा वैराग्य की अनुभूति , अर्जुन जैसे लोगों को कराना चाहते हैं जिससे उन लोगों को परम सत्य का प्रकाश दिख सके । आइये इस दिशा में पहले कदम को देखते है , जो स्थिर प्रज्ञता के रूप में है 👇
Friday, March 26, 2021
गीता अध्याय - 2 की कुछ मोतियाँ
श्रीमद्भगवद्गीत अध्याय - 2 से कुछ ध्यानोपयोगी सूत्रों को इस अंक में देख रहे हैं ।
इन्द्रिय - बिषय संयोग भोग है और दुःख का कारण भी।
यह सूत्र अधूरा है और श्रीमद्भागवत पुराण में भी कई जगह देखा जाता है पर है , अधूरा , कैसे अधूरा है ?
बिषय - आसक्त इन्द्रिय का अपने बिषय से जब संयोग होता है तब वह भोग होता है और भोग दुःख की जननी है। गीता : 3.34 में प्रभु कहते हैं , " इन्द्रिय बिषय में राग - द्वेष की ऊर्जा होती है " और जहाँ राग - द्वेष हैं , वहाँ दुःख है । अब निम्न स्लाइड को देखते हैं 👇
Thursday, March 25, 2021
अव्यक्त आत्मा और गीता अध्याय - 2
श्रीमद्भगवद्गीत में 07 अध्यायों में 25 श्लोक आत्मा /जीवात्मा से सम्बंधित है और प्रभु श्री बार - बार कहते हैं कि आत्मा अव्यक्त है ।आइये ! देखते हैं , प्रभु अव्यक्त को व्यक्त कैसे कर रहे हैं ,यहाँ गीता अध्याय - 2 में 👇
Wednesday, March 24, 2021
गीता अध्याय : 2 क्रमशः
गीता अध्याय : 2 के पिछले अंक से आगे की यात्रा के लिए नीचे एक स्लाइड दी जा रही है । क्या कभीं आप ऐसी बात सोच सकते हैं कि युद्ध के मैदान में एक पक्ष का एक प्रमुख कमांडर वैराज्ञावस्था में युद्ध कर सकता है ?
यदि आपका उत्तर नहीं है तो देखिये गीता में प्रभु कुछ ऐसा ही चाहते हैं कि अर्जुन वैराज्ञावस्था में रहते हुए युद्ध करे 👇
Sunday, March 21, 2021
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय : 2 का सार
श्रीमद्भगवद्गीत गीता अध्याय : 2 में 72 श्लोक हैं।
आज मनुष्य अपनें को इतना व्यस्त रख रहा है कि उसे सांस लेने के लिए भी वक़्त नहीं मिलता फिर गीता पढ़ने के लिए वक़्त निकलना तो की बात है ।
गीता हर हिन्दू परिवार के घर में होता है लेकिन लोग उसे तब पढ़ते हैं जब कोई आखिरी सांस भर रहा होता है , उस ब्यक्ति को सुनाने के लिए , इस आशय से कि गीता सुनने से उसे परमधाम मिल सकता है ।
गीता अध्याय : 2 के 72 श्लोकों का सार तत्त्व यहाँ एक स्लाइड में दिया जा रहा है जिसे पढ़ने में 2 मिनट से ज्यादा नहीं लग सकता ।
गीयह प्रयाश केवल उनके लिए किया जा रहा है जो समयाभाव के कारण ओणें से दूर होते जा रहे हैं , वस्तुतः गुट से दूर होना , स्वतः से दूर होना ही है ।
त्त्त्
Thursday, March 18, 2021
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय : 1 भाग : 1
लोग पूछते हैं , आपको अकेले रहते भय नहीं लगता ? मैं उत्तर देता हूँ कि अकेले रहते तो नहीं डरता लेकिन भीड़ में रहने से डरता हूँ।
ऐसा क्यों ? क्योंकि भीड़ मुझे , मुझसे छीन लेती है और मैं अपनें को खोना नहीं चाहता । संसार तो जैसा है , वैसा ही आगे भी चलता रहेगा केवल मेरी जैसी मूर्तियाँ बदलती रहेगा ।
संसार की मूर्तियों के बदलाव की गणित में अगर आप की रुचि हो तो समझिए , गीता आपको बुला रहा है ।
गीता की यात्रा का आज दूसरा दिन है । इस यात्रांश में हम गीता अध्याय : 1 के सार को निम्न स्लाइड के माध्यम से देख सकते हैं।
Monday, March 15, 2021
श्रीमद्भगवद्गीता - कुछ बातें
आज से श्रीमद्भगवद्गीता की यात्रा प्रारंभ हो रही है । इस यात्रामें गीताके हर अध्यायके सारको स्लाइड्स के माध्यम से कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया जायेगा जिससे बहुत कम समय में अध्यायों के प्रति जिज्ञासा पैदा की सके। आज पहले अंक में देखिये इस स्लाइड को 👇
Saturday, March 13, 2021
श्रीमद्भगवद्गीता में सांख्य योग
श्रीमद्भगवद्गीत अध्याय - 13 में सांख्य योग दर्शन का प्रयोग अधिक हुआ है ।
जबतक सांख्य की प्रारंभिक 68 कारिकाओं का थीक - थीक अध्ययन नहीं किया जाता तबतक गीता के सम्बंधित श्लोकों को समझना कठिन होगा।
यहाँ गीता में सांख्य दर्शन के प्रयोग सम्बंधित दो उदहारण दिए जा रहे हैं 👇