ज्ञान इन्द्रिओंकी समझ शरीर एवं मन के प्रति होश बनाना कर्म-योग की पहली सीढी है। शरीर में पाँच कर्म-इन्द्रियाँ एवं पाँच ज्ञान - इन्द्रियाँ मुख्यतत्व हैं। जहाँ दस इन्दियाँ जुड़ती हैं उस स्थान को मन कहते हैं। ज्ञान इन्द्रियाँ संसार से सूचनाएं एकत्रित करती हैं, मन उनपर मनन करता है और मन के आदेश पर कर्म-इन्द्रियाँ कर्म करती हैं।
आँख, कान, नाक, जिह्वा एवं त्वचा से क्रमशः दृश्य[रूप-रंग], ध्वनि, गंध, रस, तथा स्पर्श -संवेदनाओं के माध्यम से मनुष्य अपनें को दूसरों से जोड़ता है। दूसरों का आकर्षण मन में मनन पैदा करता है। मनन से आसक्ति, आसक्ति से कामना, कामना के साथ संकल्प और संकल्प के साथ विकल्पों का जन्म होता है। संकल्प तक तो मन-बुद्धि की ऊर्जा सामान्य रहती है लेकिन विकल्पों के साथ इसकी आवृति बदल जाती है और इसमें भय की ऊर्जा आजाती है। संकल्प तक मन-बुद्धि की ऊर्जा में राजस गुन होता है और जब विकल्प उठानें लगते हैं तब इस ऊर्जा में तामस गुन आनें लगता है , फलस्वरूप यह ऊर्जा दो में बिभक्त हो जानें से कमजोर पड़ जाती है। जैसे- जैसे मन-बुद्धि में भ्रम बढता है राजस गुन कमजोर पड़नें लगता है और तामस गुन उपर उठनें लगता है। भ्रमित मन-बुद्धि में कभीं-कभीं कामना टूट भी जाती है और जब ऐसा होता है तब क्रोध पैदा होता है जो पाप का कारन होता है।
भ्रमित मन-बुद्धि में किया गया कर्म कभीं भी पूर्ण तृप्त नहीं करता और मनुष्य एक ही भोग को बार-बार भोगता रहता है--यह दशा एक पूर्ण भोगी ब्यक्ति की है। एक भोग को भोगी-योगी , दोनों भोगते हैं; योगी के लिए एक बार का भोग उसे तृप्त कर देता है और उस भोग की तरफ़ उसकी पीठ हो जाती है पर भोगी जितना भोगता है उतना ही वह और अतृप्त होता जाता है। भोगी के भोग से उसको भोग के समय सुख मिलता है लेकिन उस सुख में दुःख का बीज होता है जबकि योगी के भोग से उसको सम भाव की स्थिति मिलती है। भोगी का भोग राजस एवं तामस गुणों केप्रभाव में घाटित होता है जिसमे कामना या भय होता है पर योगी के भोग में गुणों का प्रभाव नहीं होता।
योगी को भोग में उतरना पड़ता है क्योंकि प्रकृति उसे उतारती है अपनें संतुलन को बनाए रखनें के लिए लेकिन भोगी गुणों के प्रभाव में भोग में उतरता है ।
योगी चूंकि भावातीत स्थिति में भोग में होता है अतः उसकी पूरी ऊर्जा उस भोग में लगती है और वह
तृप्त हो कर उसके रहस्य को समझ जाता है जब की भोगी भोग में बेसोश होता है उसको कुछ पता नहीं होता की वह क्या कर रहा है?
होश में भोग साधना का एक अंश है और गुणों के प्रभाव का भोग पशुवत - भोग है।
=====ॐ=====
Saturday, July 18, 2009
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