गीता भोग प्राप्ति में मदद नहीं करता वल्कि भोग - तत्वों के प्रति होश बना कर बैरागी बनाता है।
गीता मृत्यु पर्यंत स्वर्ग नहीं देता वल्कि परम-धाम का मार्ग दिखाता है ।
गीता में स्वर्ग भी भोग का स्थान है जो योग खंडित योगी को मिलता है।
आईये चलते हैं गीता में और देखते हैं वैराग,ज्ञान और मोक्ष के सम्बन्ध को----------
श्लोक 2.15 ---- सुख-दुःख से अप्रभावित मोक्ष योग्य है ।
श्लोक 15.3----संसार को समझना वैराग है।
श्लोक 2.52----मोह के साथ बैराग नहीं मिलता।
श्लोक 4.10----राग,भय एवं क्रोध रहित ग्यानी है [अर्थात राजस,तामस गुणों से अप्रभावित ]
श्लोक 4.38----योग सिद्धि पर ज्ञान मिलता है।
श्लोक 13.2----क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ को समझना ज्ञान है।
श्लोक 2.45,3.27,3.33
गुन कर्म करता हैं और ऐसे सभी कर्म भोग हैं।
श्लोक 6.27----राजस गुन के साथ परमात्मा की सोच नहीं आती।
श्लोक 5.22,1.38
इन्द्रिय विषय के सहयोग से जो कर्म होता है वह भोग है और ऐसे कर्म के सुख में दुःख का बीज होता है।
श्लोक 18.11----कर्म का त्याग पूर्ण रूप से करना असंभव है।
श्लोक 3.4,18.49,18.50
कर्म त्याग से सिद्धि नहीं मिलती , आसक्ति रहित कर्म करनें से सिद्धि मिलती है जो ज्ञान योग की परा निष्ठा है।
श्लोक ----18.54,18.55
समभाव परा भक्त हर पल परमात्मा से परमात्मा में होता है।
श्लोक----9.29,2.69
परा भक्त के लिए परमात्मा निराकार नहीं रह सकता और ऐसा योगी वैरागी होता है।
गीता गणित को समझनें में वक्त लगेगा आप अपनें को इन सूत्रों में डुबाओ जितना डूबोगे उतना आनंद मिलेगा।
गीता तो सब का इन्तजार कर रहा है लेकिन कोई इसको देखे तो सही।
=====ॐ=======
Friday, July 17, 2009
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