Wednesday, September 28, 2011

गीता अध्याय छ के योग सूत्र

गीता अध्याय –06

[]योग का फल

गीता सूत्र –6.21

सुखं आत्यंतिकम् यत् तत् बुद्धि ग्राह्यं अतीन्द्रियं/

वेत्ति यत्र न च एव अयं स्थितः चलति तत्त्वं//

ध्यान की गहराई में पहुंचा योगी बुद्धि माध्यम से उस परम आनंद में पहुचता होता है जो उसे परम सत्य से कुछ ऐसा जोड़ देता है कि वह उस से कभीं अलग नहीं हो पाता //

Meditation is the source of supreme delight perceived by the intelligence and which is beyond the reach of senses . Such yogin who is enjoying the beautitude of meditation is so merged with the absolute reality that he no longer falls away from it .

अध्याय – 06 में ध्यान के सम्बन्ध में बहुत ही प्यारे सूत्र हैं जो धीरे - धीरे पत्थर जैसे कठोर ब्यक्ति को भी ध्यान के माध्यम से द्रवीभूत करते हैं // गीता में हमनें देखा कि ध्यान से मन – बुद्धि परम पर ऐसे स्थिर हो जाते हैं जैसे वायु रहित स्थान में रखे गए दीपक की ज्योति स्थिर होती है औरगीता हमें यह भी बताया कि जबतक मन – बुद्धि निर्विकार नहीं होते तबतक उनमें प्रभु की सोच आ नहीं सकती / ध्यान वह माध्यम हैजो मन – बुद्धि में बह रही गुण प्रभावित उर्जा को निर्गुणी बनाता है /


=====ओम========


Saturday, September 24, 2011

गीता अध्याय छ योग का फल भाग दो

गीता अध्याय –06

[]योग का फल


गीता सूत्र –6.20


यत्र उपरमते चित्तं निरुद्धं योग सेवया/

यत्र च एव आत्मना आत्मानं पश्यन्//

योग में ज्योंही चित्त भोग – भाव की उर्ज से मुक्त हो जाता है---

उस मन की स्थिति में वह योगी आत्मा की अनुभूति से गुजरता है//


During meditation when mind reaches to the state of pure senenity , the yogin realizes the presence of the Soul within . This state of mind opens the door where one realizes himself to be out of his own boby and this is the experience of Samadhi .


योग , तप एवं ध्यान एक माध्यम हैं जहां मनुष्य स्वयं को देखता है उन आँखों से जिनके पर्दों पर भोग की चादर नहीं पडी होती , जिन आँखों में प्रभु की रोशनी होती है और जिन आँखों से सत्य एवं असत्य स्पष्ट रूप से दिखते हैं और वह भी दिखता है जिससे सत्य एवं असत्य हैं /

ध्यान वह प्रक्रिया है------

जो इन्द्रियों से मन … .

मन से बुद्धि में बहा रही ऊर्जा को निर्विकार करती है …

और

निर्विकार मन – बुद्धि वह दर्पण हैं जिस पर … .

प्रभु प्रतिबिंबित होता है//


====ओम=====




Tuesday, September 20, 2011

गीता अध्याय छ भाग तीन

गीता अध्याय –06

[ ] योग का फल

यहाँ हम गीता अध्याय के निम्न सूत्रों को देखनें जा रहे हैं :-----


6.19

620

6.21

6.22

6.23

6.26

6.27

2.52

15.3

14.19

1420

14.23

6.29

630

x

x


गीता सूत्र –6.19

यथा दीप : निवात – स्थ : न इन्गते सा उपमा स्मृता /

योगिनः यत - चित्तस्य युज्जतः योगम् आत्मन : //

ध्यानारुढ – योगी का चित्त उस तरह से स्थिर होता है जैसे वायु रहित स्थान में दीपक की ज्योति स्थिर रहती है//

As a lamp in a windless place does not flicker , such is the state of mind of the yogin who is fully stablized in yoga .

Serenity of mind is a mode of the union of indivisual Soul with the Whole Cosmos .


समुद्र के तूफ़ान को देखते हो जो इस तुफान को देख कर भय में डूब गया वह समुद्र की परम शांति को न देख पायेगा/समुद्र के तूफानी लहरों के साथ जो ताल मेल बैठा लिया उसे वह लहरें समुद्र की उस गहराई को दिखा सकती हैं जहां से वे उठ रही होती हैं लेकिन जिस से वे उठ रही होती है वह परम शांत होता है/संसार में भोग से सम्मोहि मन तूफानी समुद्र की लहरों जैसा होता है और ध्यान उन मन की तूफानी लहरों को वहाँ पहुँचा देता है जहां से वे उठ रही होती हैं लेकिन वह स्वयं शांत रहता है/

शांत मन दर्पण पर प्रभु प्रतिबिंबित होता है //


=====ओम=====


Saturday, September 17, 2011

ध्यान सावधानियाँ भाग दो

गीता अध्याय –06

ध्यान में सावधानियां- 02

गीता सूत्र –6.13 – 6.14

यहाँ गीता के दो सूत्र कह रहे हैं ------

ध्यान या योगाभ्यास करते समय … ........

[]पवित्र,समतल एवं शांत जगह होनी चाहिए जहां ध्यान – योग करना हो/

[]किसी सामान्य मुद्रा में बैठें जिसमें कुछ देर बैठना संभव हो सके/

[]सर,गर्दन,धड सीधे पृथ्वी पर लम्बवत होनें चाहिए/

[]शरीर के किसी भी भाग में तनाव नहीं होना चाहिए/

[ ] प्राण वायु एवं अपान वायु सम रहनी चाहिए /

[ ] इन्द्रियों एवं मन में जो घट रहा हो उसका द्रष्टा बनें रहें /

[]मन में उठ रहे विचारों को शब्द रहित रहनें दें/

[]ध्यान अभ्यास में पहले तन का ध्यान होना चाहिए/

[ झ – क ] तन ध्यान में तन को देखते रहें और जहां कुछ हो रहा हो उसे होनें दें उसके लिए कुछ करें नहीं /

[ - ] तन सामान्य स्थति में रहना चाहिए , तन में कोई तनाव नहीं होना चाहिए /


ऊपर की बातों में दो बातें मूल बातें हैं------

  • प्राण वायु एवं अपान वायु का सम रहना

  • मन में उठते विचारों को शब्द रहित रहनें देना

    अगले अंक में हम इन दो बातों को देखेंगे


============ओम==============




Tuesday, September 13, 2011

गीता अध्याय छ ध्यान सावधानियाँ भाग एक

गीता अध्याय –06का अगला भाग

[ ] योग – साव धानियाँ

पहले गीता का एक श्लोक -----

श्लोक –6.15

युज्जन् एवं सदा आत्मानं योगी नियत मानस: /

शांतिम् निर्वाणपरमां मत्-स्थानं अधिगच्छति//


मन – ध्यान निर्वाण का द्वार है//

Mind meditation is a door of Nirvana


गीता अध्याय – 06 में हम उन सूत्रों को यहाँ देखनें जा रहे हैं जिनका सम्बन्ध सीधे योग – सावधानियों से है /

सूत्र6.11 – 6.12

स्थान एवं समय

योग या ध्यान जहां आप करना चाह रहे हों वहस्थान शांत होनाचाहिए , शुद्ध एवं पवित्रहोना चाहिए और जहां बैठना हो वहस्थान समतलहोना चाहिए / ध्यान या योग जहां करना हो उस स्थान परकोई बिछावन डालनाचाहिए / ध्यान का समयठीक सूर्योदय के पूर्व या थीं सूर्यास्त के बाद उचित समय होता है जिसको क्रमश : गोधूली एवं संध्याकहते हैं / संध्या क्या है ? संध्या वह समय है जहां न दिन होता है और न रात और जहां रात एवं दिन का मिलन होता है या यह भी कह सकते हैं , यह वह समय है जहां से रात - दिन निकलते हैं लेकिन जहां रात - दिन होते नहीं / गोधूली का अर्थ है वह समय जब गांव के लोग सूर्योदय से थीक पूर्व अपनें - अपनें पशुओं को गांव से बाहर चराने को ले कर जाया करते हैं /

ध्यान में पहले बैठनें का आभास होना चाहिए और जब आप ध्यान में बैठें तब देह के किसी भी भाग में तनाव नहीं होता चाहिए / सुबह का ध्यान करते समय आप की आँखें पूर्व दिशा की ओर होनी चाहिए और संध्या के समय ध्यान करते अमय आँखें पश्चिम की ओर रहें तो अच्छा होगा /

बुद्ध कहते हैं------

यदि कोई प्रतिदिन एक घंटा अपनी आती-जाती श्वासों को देखनें का अभ्यास करता रहे तोनिर्वाणउस से ज्यादा दिन तक दूर नहीं रहता//ध्यान एक मार्ग हैं जो मन का द्रष्टा श्वास के माध्यम से बनाता है/

कुछ और बातें अगले अंक में-------

=====ओम========


Friday, September 9, 2011

गीता अध्याय छ दो शब्द

गीता के अध्याय –06में हम प्रवेश कर चुके हैं और हमारा अगला कदम अध्याय के परिचय में पहुँच रहा है/इस अध्याय में कुल47श्लोक हैं जिनमें पांच श्लोक[ 6.33 , 6.34 , 6.37 , 6.38 , 6.39 ]अर्जुन के दो प्रश्नों के रूप में हैं और अन्य सभीं42श्लोक प्रभु श्री कृष्ण के हैं/अर्जुन अपनें श्लोक –5.1के माध्यम से पूछा था------

आप कभीं कर्म संन्यास की बात करते हैं और कभी कर्म – योग की प्रशंसा करते हैं , आप कृपया मुझे यह बाताएं कि मेरे लिए इन दो में कौन सा उत्तम रहेगा ? अध्याय – 06 के प्रारंभिक 32 श्लोक अर्जुन के ऊपर बताए गए प्रश्न के सम्बन्ध में हैं और अन्य 10 श्लोकों में प्रभु योग के सम्बन्ध में कुछ अन्य अहम बातें बताते हैं जिनको हम आगे चल कर देखनें वाले हैं /

गीता अध्याय –06को हम चार भागों में कुछ इस प्रकार से देखानेंवाले हैं-------

[ ] योग सावधानियां

[]योग का फल

[]योग एवं संन्यास

[]अर्जुन के दो प्रश्न

[ ] योग- साव धानियां

इस भाग में प्रभु बतानें वाले हैं कि ध्यान – योग एवं साधना में किन – किन बातों पर विशेष रूपमें ध्यान रखना चाहिए जिससे ध्यान – योग के परिणाम उत्तम हों /

[]योग का फल

योग का फह है द्रष्टा भाव का उदय होना जहां परम सत्य रहस्य नहीं रह जाता /

[ ] योग एवं संन्यास

योग एक प्रक्रिया है और संन्यास इस प्रक्रिया का फल है /

[]अर्जुन के दो प्रश्न----

[ घ – क ] अर्जुन कहते हैं , हे प्रभो , आप की बातों को मैं अपनें अस्थिर मन के कारण नहीं समझ पा रहा , मैं अपनें मन को कैसे शांत करूँ ?


[ घ – ख ] यहाँ अर्जुन पूछ रहे हैं , श्रद्धावान एवं असफल योगी की गति कैसी होती है ?


अगले अंक में योग – सावधानियों के सम्बन्ध में देखेंगे //


=====ओम============


Monday, September 5, 2011

अध्याय छ का परिचय

गीता अध्याय – 06 अर्जुन के उस प्रश्न के सन्दर्भ में है जो अध्याय – 05 के प्रारम्भ में है कुछ इस प्रकार -----

अर्जुन कहते हैं,कभी आप कर्म संन्यास कि प्रशंसा करते हैं और कभी कर्म – योग के लिए प्रेरित करते हैं,आखिर मेरे लिए कौन उत्तम है,स्पष्ट रूप से मुझे बताएं//

अध्याय – 06 में श्लोक 6.32 तक इस प्रश्न के संदर्भ में हैं //

इस अध्याय में कुल47श्लोक हैं//

सूत्र 6.33 – 6.34 के मध्यम से अर्जुन अपनें मन को शांत करनें का उपाय जानना चाहते हैं //

गीता में यह अध्यान हम सब को बताता है-----------

  • बुद्धों की छाया नहीं बनती

  • बुद्ध कभी स्वप्न नहीं देखते

  • कर्म संन्यास कर्म – योग का फल है

  • कर्म कर्ता तीन गुण हैं न की मनुष्य

  • कर्ता भाव का आना अहंकार की पहचान है

  • ध्यान निर्वाण का द्वार है

  • तन,मन एवं बुद्धि में जब निर्विकार ऊर्जा बहनें लगाती है तब …..

  • मन दर्पण पर प्रभु प्रतिबिंबित होते हैं

  • मन अभ्यास – योग से शांत होता है


======ओम======



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