Tuesday, September 13, 2011

गीता अध्याय छ ध्यान सावधानियाँ भाग एक

गीता अध्याय –06का अगला भाग

[ ] योग – साव धानियाँ

पहले गीता का एक श्लोक -----

श्लोक –6.15

युज्जन् एवं सदा आत्मानं योगी नियत मानस: /

शांतिम् निर्वाणपरमां मत्-स्थानं अधिगच्छति//


मन – ध्यान निर्वाण का द्वार है//

Mind meditation is a door of Nirvana


गीता अध्याय – 06 में हम उन सूत्रों को यहाँ देखनें जा रहे हैं जिनका सम्बन्ध सीधे योग – सावधानियों से है /

सूत्र6.11 – 6.12

स्थान एवं समय

योग या ध्यान जहां आप करना चाह रहे हों वहस्थान शांत होनाचाहिए , शुद्ध एवं पवित्रहोना चाहिए और जहां बैठना हो वहस्थान समतलहोना चाहिए / ध्यान या योग जहां करना हो उस स्थान परकोई बिछावन डालनाचाहिए / ध्यान का समयठीक सूर्योदय के पूर्व या थीं सूर्यास्त के बाद उचित समय होता है जिसको क्रमश : गोधूली एवं संध्याकहते हैं / संध्या क्या है ? संध्या वह समय है जहां न दिन होता है और न रात और जहां रात एवं दिन का मिलन होता है या यह भी कह सकते हैं , यह वह समय है जहां से रात - दिन निकलते हैं लेकिन जहां रात - दिन होते नहीं / गोधूली का अर्थ है वह समय जब गांव के लोग सूर्योदय से थीक पूर्व अपनें - अपनें पशुओं को गांव से बाहर चराने को ले कर जाया करते हैं /

ध्यान में पहले बैठनें का आभास होना चाहिए और जब आप ध्यान में बैठें तब देह के किसी भी भाग में तनाव नहीं होता चाहिए / सुबह का ध्यान करते समय आप की आँखें पूर्व दिशा की ओर होनी चाहिए और संध्या के समय ध्यान करते अमय आँखें पश्चिम की ओर रहें तो अच्छा होगा /

बुद्ध कहते हैं------

यदि कोई प्रतिदिन एक घंटा अपनी आती-जाती श्वासों को देखनें का अभ्यास करता रहे तोनिर्वाणउस से ज्यादा दिन तक दूर नहीं रहता//ध्यान एक मार्ग हैं जो मन का द्रष्टा श्वास के माध्यम से बनाता है/

कुछ और बातें अगले अंक में-------

=====ओम========


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