गीता अध्याय – 06 अर्जुन के उस प्रश्न के सन्दर्भ में है जो अध्याय – 05 के प्रारम्भ में है कुछ इस प्रकार -----
अर्जुन कहते हैं,कभी आप कर्म संन्यास कि प्रशंसा करते हैं और कभी कर्म – योग के लिए प्रेरित करते हैं,आखिर मेरे लिए कौन उत्तम है,स्पष्ट रूप से मुझे बताएं//
अध्याय – 06 में श्लोक 6.32 तक इस प्रश्न के संदर्भ में हैं //
इस अध्याय में कुल47श्लोक हैं//
सूत्र 6.33 – 6.34 के मध्यम से अर्जुन अपनें मन को शांत करनें का उपाय जानना चाहते हैं //
गीता में यह अध्यान हम सब को बताता है-----------
बुद्धों की छाया नहीं बनती
बुद्ध कभी स्वप्न नहीं देखते
कर्म संन्यास कर्म – योग का फल है
कर्म कर्ता तीन गुण हैं न की मनुष्य
कर्ता भाव का आना अहंकार की पहचान है
ध्यान निर्वाण का द्वार है
तन,मन एवं बुद्धि में जब निर्विकार ऊर्जा बहनें लगाती है तब …..
मन दर्पण पर प्रभु प्रतिबिंबित होते हैं
मन अभ्यास – योग से शांत होता है
======ओम======
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