Friday, September 9, 2011

गीता अध्याय छ दो शब्द

गीता के अध्याय –06में हम प्रवेश कर चुके हैं और हमारा अगला कदम अध्याय के परिचय में पहुँच रहा है/इस अध्याय में कुल47श्लोक हैं जिनमें पांच श्लोक[ 6.33 , 6.34 , 6.37 , 6.38 , 6.39 ]अर्जुन के दो प्रश्नों के रूप में हैं और अन्य सभीं42श्लोक प्रभु श्री कृष्ण के हैं/अर्जुन अपनें श्लोक –5.1के माध्यम से पूछा था------

आप कभीं कर्म संन्यास की बात करते हैं और कभी कर्म – योग की प्रशंसा करते हैं , आप कृपया मुझे यह बाताएं कि मेरे लिए इन दो में कौन सा उत्तम रहेगा ? अध्याय – 06 के प्रारंभिक 32 श्लोक अर्जुन के ऊपर बताए गए प्रश्न के सम्बन्ध में हैं और अन्य 10 श्लोकों में प्रभु योग के सम्बन्ध में कुछ अन्य अहम बातें बताते हैं जिनको हम आगे चल कर देखनें वाले हैं /

गीता अध्याय –06को हम चार भागों में कुछ इस प्रकार से देखानेंवाले हैं-------

[ ] योग सावधानियां

[]योग का फल

[]योग एवं संन्यास

[]अर्जुन के दो प्रश्न

[ ] योग- साव धानियां

इस भाग में प्रभु बतानें वाले हैं कि ध्यान – योग एवं साधना में किन – किन बातों पर विशेष रूपमें ध्यान रखना चाहिए जिससे ध्यान – योग के परिणाम उत्तम हों /

[]योग का फल

योग का फह है द्रष्टा भाव का उदय होना जहां परम सत्य रहस्य नहीं रह जाता /

[ ] योग एवं संन्यास

योग एक प्रक्रिया है और संन्यास इस प्रक्रिया का फल है /

[]अर्जुन के दो प्रश्न----

[ घ – क ] अर्जुन कहते हैं , हे प्रभो , आप की बातों को मैं अपनें अस्थिर मन के कारण नहीं समझ पा रहा , मैं अपनें मन को कैसे शांत करूँ ?


[ घ – ख ] यहाँ अर्जुन पूछ रहे हैं , श्रद्धावान एवं असफल योगी की गति कैसी होती है ?


अगले अंक में योग – सावधानियों के सम्बन्ध में देखेंगे //


=====ओम============


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