गीता अध्याय –06
[ ख] योग का फल
यहाँ हम गीता अध्याय के निम्न सूत्रों को देखनें जा रहे हैं :-----
6.19 | 620 | 6.21 | 6.22 | 6.23 | 6.26 | 6.27 | 2.52 |
15.3 | 14.19 | 1420 | 14.23 | 6.29 | 630 | x | x |
गीता सूत्र –6.19
यथा दीप : निवात – स्थ : न इन्गते सा उपमा स्मृता /
योगिनः यत - चित्तस्य युज्जतः योगम् आत्मन : //
ध्यानारुढ – योगी का चित्त उस तरह से स्थिर होता है जैसे वायु रहित स्थान में दीपक की ज्योति स्थिर रहती है//
As a lamp in a windless place does not flicker , such is the state of mind of the yogin who is fully stablized in yoga .
Serenity of mind is a mode of the union of indivisual Soul with the Whole Cosmos .
समुद्र के तूफ़ान को देखते हो जो इस तुफान को देख कर भय में डूब गया वह समुद्र की परम शांति को न देख पायेगा/समुद्र के तूफानी लहरों के साथ जो ताल मेल बैठा लिया उसे वह लहरें समुद्र की उस गहराई को दिखा सकती हैं जहां से वे उठ रही होती हैं लेकिन जिस से वे उठ रही होती है वह परम शांत होता है/संसार में भोग से सम्मोहि मन तूफानी समुद्र की लहरों जैसा होता है और ध्यान उन मन की तूफानी लहरों को वहाँ पहुँचा देता है जहां से वे उठ रही होती हैं लेकिन वह स्वयं शांत रहता है/
शांत मन दर्पण पर प्रभु प्रतिबिंबित होता है //
=====ओम=====
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