गीता अध्याय –06
[ख]योग का फल
गीता सूत्र –6.21
सुखं आत्यंतिकम् यत् तत् बुद्धि ग्राह्यं अतीन्द्रियं/
वेत्ति यत्र न च एव अयं स्थितः चलति तत्त्वं//
ध्यान की गहराई में पहुंचा योगी बुद्धि माध्यम से उस परम आनंद में पहुचता होता है जो उसे परम सत्य से कुछ ऐसा जोड़ देता है कि वह उस से कभीं अलग नहीं हो पाता //
Meditation is the source of supreme delight perceived by the intelligence and which is beyond the reach of senses . Such yogin who is enjoying the beautitude of meditation is so merged with the absolute reality that he no longer falls away from it .
अध्याय – 06 में ध्यान के सम्बन्ध में बहुत ही प्यारे सूत्र हैं जो धीरे - धीरे पत्थर जैसे कठोर ब्यक्ति को भी ध्यान के माध्यम से द्रवीभूत करते हैं // गीता में हमनें देखा कि ध्यान से मन – बुद्धि परम पर ऐसे स्थिर हो जाते हैं जैसे वायु रहित स्थान में रखे गए दीपक की ज्योति स्थिर होती है औरगीता हमें यह भी बताया कि जबतक मन – बुद्धि निर्विकार नहीं होते तबतक उनमें प्रभु की सोच आ नहीं सकती / ध्यान वह माध्यम हैजो मन – बुद्धि में बह रही गुण प्रभावित उर्जा को निर्गुणी बनाता है /
=====ओम========
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