Monday, October 10, 2011

राजस गुण प्रभु राह का अवरोध है

गीता अध्याय –06

[]योग का फल

गीता सूत्र –6.27

प्रशांत मनसं हि एनं

योगिनं सुखं उत्तमम् /

उपैति शांत – रजसम्

ब्रह्म भूतं अकल्मषम् //

शाब्दिक अर्थ

पूर्ण शांत मन के साथ योगी उत्तम सुख में रहता है

राजस गुण शांत होनें पर मनुष्य ब्रह्म मय हो जाता है//

For supreme happiness comes to the yoginwhose mind is peaceful , whose passions are at rest , who is stainless and has become one with God .

ऊपर के गीता सूत्र को जब आप बार – बार मनन करेंगे तब आप को निम्न समीकरण मिलेगा /

राजस- गुण प्रभु राह का सबसे मजबूत रुकावट है//

गीता गुण – विज्ञान है जिसमें कहीं - कहीं भक्ति की एकाध किरण दिखती है जो सांख्य – योग के सन्दर्भ में होती है लेकिन लोग गीता को भक्ति में खूब ढाला / गीता के प्रारंभ में [ गीता सूत्र – 2.47 से 2.52 तक ] में प्रभु श्री कृष्णसम – भाव के साथ बुद्धि योग शब्द का प्रयोग किया है और समभाव की स्थिति को समत्व – योग का नाम दिया है / गीता गुणों का विज्ञान है और विज्ञान को ऊर्जा बुद्धि से मिलती है जबकी भक्ति की ऊर्जा ह्रदय से आती है / प्रभु श्री कृष्ण गीता के माध्यम से बहुत ही सीधा समीकरण देते हैं कुछ इस प्रकार से ----------

  • तीन गुण मुझसे हैं लेकिन मैं गुणातीत हूँ

  • तीन गुणों का माध्यम माया है

  • माया का गुलाम मुझसे दूर रहता है

  • मैं मायापति हूँ लेकिन माया का मेरे ऊपर प्रभाव नहीं रहता

  • माया से माया में वैज्ञानिक टाइम – स्पेस है

  • वैज्ञानिक तें-स्पेस में सभी जड़ – चेतन हैं


=====ओम्======


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