गीता अध्याय –06
[ख]योग का फल
गीता सूत्र –6.27
प्रशांत मनसं हि एनं
योगिनं सुखं उत्तमम् /
उपैति शांत – रजसम्
ब्रह्म भूतं अकल्मषम् //
शाब्दिक अर्थ
पूर्ण शांत मन के साथ योगी उत्तम सुख में रहता है
राजस गुण शांत होनें पर मनुष्य ब्रह्म मय हो जाता है//
For supreme happiness comes to the yoginwhose mind is peaceful , whose passions are at rest , who is stainless and has become one with God .
ऊपर के गीता सूत्र को जब आप बार – बार मनन करेंगे तब आप को निम्न समीकरण मिलेगा /
राजस- गुण प्रभु राह का सबसे मजबूत रुकावट है//
गीता गुण – विज्ञान है जिसमें कहीं - कहीं भक्ति की एकाध किरण दिखती है जो सांख्य – योग के सन्दर्भ में होती है लेकिन लोग गीता को भक्ति में खूब ढाला / गीता के प्रारंभ में [ गीता सूत्र – 2.47 से 2.52 तक ] में प्रभु श्री कृष्णसम – भाव के साथ बुद्धि योग शब्द का प्रयोग किया है और समभाव की स्थिति को समत्व – योग का नाम दिया है / गीता गुणों का विज्ञान है और विज्ञान को ऊर्जा बुद्धि से मिलती है जबकी भक्ति की ऊर्जा ह्रदय से आती है / प्रभु श्री कृष्ण गीता के माध्यम से बहुत ही सीधा समीकरण देते हैं कुछ इस प्रकार से ----------
तीन गुण मुझसे हैं लेकिन मैं गुणातीत हूँ
तीन गुणों का माध्यम माया है
माया का गुलाम मुझसे दूर रहता है
मैं मायापति हूँ लेकिन माया का मेरे ऊपर प्रभाव नहीं रहता
माया से माया में वैज्ञानिक टाइम – स्पेस है
वैज्ञानिक तें-स्पेस में सभी जड़ – चेतन हैं
=====ओम्======
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