Monday, October 17, 2011

गीता अध्याय छ चरण तीन


गीता अध्याय –06


तीसरा चरण


[]योग – संन्यास


सूत्र – 6.1


अनाश्रितः कर्म फलं कार्यं कर्म करोति यः /


सः संन्यासी च योगी च न निः अग्नि : न च अक्रिय : //


जिस कर्म में कर्म फल का आश्रय न हो-----


वह कर्म योगी - संन्यासी बनाता है , कर्म को त्यागना संन्यास नहीं //




Action without the expectation of its result makes one Yogin and Sannyasin but renunciation of action is not the identification of a Sanyasin or Yogin .


गीता में यहाँ प्रभु योगी और संन्यासी एक के दो संबोधन के रूप में प्रयोग का रहे हैं और


कह रहे हैं -------




  • कर्म योगी वह जो जीवन निर्वाह के लिए जो कर्म होनें चाहिए इनका त्याग नहीं करता



  • वह कर्म योगी कर्म सन्यासी होता है जिसके कर्म में फल की सोच न हो



  • कर्म – योग की साधना जब कर्म संन्यास घटित होता है तब वह कर्म भोग से योग में बदल जाता है



  • बिना संन्यास घटित हुए कर्म कर्म – योग नहीं बनाता


    और



  • बिना कर्म – योग निर्वाण नहीं मिलता




==============ओम्==============


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