गीता अध्याय – 06
[ ख ] योग का फल
पिछले भाग में हमने गीता सूत्र – 6.27 को देखा और अब इस सूत्र के सम्बन्ध में गीता के कुछ और सम्बंधित सूत्रों को यहाँ देख रहे हैं ------
गीता सूत्र –2.52
मोह एवं वैराज्ञ एक साथ एक मं - बुद्धि में नहीं रहते
गीता सूत्र –15.3
यह सूत्र बताता है , वैराज्ञ से भोग संसार का बोध होता है
गीता सूत्र –14.19 , 14.20
प्रकृति के तीन गुणों को कर्ता देखनें वाला पाप रहित संभव में द्रष्टा होता है
गीता सूत्र –14.23
गुणों को जो कर्ता देखता है वह समभाव में होता है
गीता सूत्र –6.29
सभी भूतों को आत्मा से आत्मा में देखनें वाला समभाव योग – युक्त योगी होता है
गीता सूत्र –6.30
सभी भूतों को मुझसे एवं मुझमें जो देखता है उसके लिए मैं अदृश्य रहीं रहता , यह बात श्री कृष्ण कह रहे हैं
गीता और आप का सम्बन्ध बना रहे और मुझे क्या चाहिए?
=====ओम्=======
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