Thursday, November 17, 2011

मन को कैसे पकडें

गीता सूत्र – 6.33 , 6.34

:अयम् योगः त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन

एतस्य अहम् पश्यामि चंचलत्वात् स्थितिम् स्थिराम्

चंचलम् हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवत् दृढम्

तस्य अहम् निग्रहम् मन्ये वायो:इव सु-दुष्करम्


इन दो सूत्रों को स्वामी प्रभुपाद जी इस तरह से देख रहे हैं -----

अर्जुन कह रहे हैं , हे मधुसूदन ! आपने जिस योग पद्धति का संक्षेप में वर्णन किया है , वह मेरे लिए अब्यवहारिक तथा असहनीय है , क्योंकि मन चंचल तथा अस्थिर है //

हे कृष्ण ! क्योंकि मन चंचल [ अस्थिर ] , उच्छृंखल , हठीला तथा अत्यंत बलवान है , अतः मुझे इसे बश में करना वायु को वश में करनें से भी अधिक कठिन लगता है //


Dr S. Radhakrishanan ऊपर से सूत्रों को कुछ इस प्रकार से देखते हैं --------

Arjuna said : This Yoga declared by you to be of the nature of equality [ evenness of mind ] , O Madhusudana [ Krishna ] , I see no stable foundation for , on account of reslessness .

For the mind is verily fickle , O Krishna , it is impetuous , strong and obstinate . I think that it is as difficult to control as the wind .

दो विश्व स्तर के दार्शनिकों की बात आप देखे अब और क्या कहा जा सकता है इन दो सूत्रों के सम्बन्ध में ? मैं तो इन दो महान आत्माओं के सामनें एक कण के समान भी नहीं हूँ लेकिन एक अनपढ़ की तरह इन दो सूत्रों के माध्यम से अर्जुन जो कहना चाह रहे वह कुछ इस प्रकार से समझ रहा हूँ : ------

अर्जुन को अब इतना तो पता चल रहा है कि प्रभु की बातें उनके सर के ऊपर – ऊपर से निकल जा रही हैं और वे प्रभु की बातों को पकड़ना भी चाह रहे है/अर्जुन कह रहे हैं,हे कृष्ण!मेरा मन बहुत चंचल हो रहा है और उसकी चंचलता को मैं नियंत्रित करने में अपनें को असमर्थ देख रहा हूँ आप कृपया मुझे यथा उचित राह दिखाएँ जिससे मैं अपनें मन को स्थिर कर सकूं और आप की बातों को समझ सकूं/अर्जुन यहाँ आ कर कुछ ऎसी बात कर रहे हैं जिनसे यह समझा जा सकता है कि अब उनके मार्ग की दिशा सही हो सकती है/यहाँ एक बात बहुत गहरी दिख दिख हैऔर वह है कि मन जबतक स्थिर नहीं,मन जबतक शांत नहीं,मन जबतक प्रश्न रहित नहीं तहतक कोई कुछ समझ नहीं सकता;वह कभी दो कदम आगे चलेगा तो कभीं दो कदम पीछे और परिणाम रहित उसकी यात्रा

होगी/

मन की स्थिरता बुद्धि को निर्विकार बनाती है

निर्विकार बुद्धि चेतना के फैलाव में मदद करती है

और चेतना के फैलाव से सत्य का बोध होता है


====ओम्======


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