गीता ब्रह्माण्ड रहस्य एवं जीव उत्पत्ति
यहाँ देखते हैं गीता के निम्न सूत्रों को
3.5 | 3.27 | 3.33 | 5.13 | 7.4 | 7.5 | 7.6 |
7.8 | 7.9 | 7.12 | 7.13 | 7.14, 7.15 | 8.16 | 8.17 |
8.18 | 8.19 | 820 | 8.21 | 8.22 | 9.8 | 10.21 |
13.6 | 13.7 | 13.13 | 1320 | 13.21 | 13.34 | 14.3 |
14.4 | 14.5 | 14.11 | 14.19 | 14.21 | 14.27 | 15.6 |
15.7 | 15.12 | 15.16 | 15.17 | 15.18 | | |
गीता के 10 अध्यायों से 41 सूत्रों को चुनकर यहाँ दे रहा हूँ . आप लोग इनको खूब पी सकते हैं /
Prof. Albert Einsteinकहते हैं …....
जब मैं गीता में ब्रह्माण्ड रहस्य को पढता हूँ कि परमात्मा ब्रह्माण्ड एवं जीवों का निर्माण कैसे किया ? तब मुझे संदेह रहित ऐसा ज्ञान मिलता है जैसा कहीं और नहीं देखता /
अब आप को गीता के 41 सूत्रों का भाव मैं देने की कोशीश कर रहा हूँ और आप सबसे प्रार्थना है कि आप लोग इन सूत्रों को जरुर पढ़ें -------
परमात्मा सम्पूर्ण टाइम – स्पेस का नाभि केंद्र है ; परमात्मा से परमात्मा में तीन गुण माया का निर्माण करते और ये गुण परमात्मा से हैं लेकिन परमात्मा गुणातीत है / माया दो प्रकृतियों को बनाती है जिसमें पञ्च महाभूत , मन , बुद्धि , अहंकार , चेतना हैं / माया में जब ऐसी परिस्थिति आती है कि ये दोनों प्रकृतियाँ आपस में मिलती हैं तब प्रभु से प्रभु का क्वांटा स्वरुप आत्मा इनमें मिल जाती है और जीव का निर्माण हो जाता है / सम्पूर्ण Time – Space Pulsating mode में है और इस pulsation से प्रकृति - पुरुष का योग होता रहता है / प्रकृति एवं पुरुष का योग जीव निर्माण का कारण है /
एक परमात्मा समयातीत है बाक़ी सभी समयाधीन हैं अर्थात आज हैं , कल नहीं रहेंगे और परसों कहीं और प्रकट हो जायेंगे / गीता कहता है , यह पृथ्वी एक दिन समाप्त हो जायेगी लेकिन दूसरी ऎसी ही पृथ्वी बन भी रही है काहीं और अतःयहाँ मात्र सब का रूपान्तरण एवं नवीनीकरण होता रहता है और कोई समाप्त नहीं होता पर समाप्त हुआ सा दिखत भर है / गीता कहता है , ब्रह्म - लोग सहित सभीं लोक पुनरावर्ती हैं / आज पृथी पर जो जीव हैं उनके यहाँ रहने की अवधि है -1000 [ चरों युगों की अवधि ] और फिर इतने समय तक यहाँ अन्धेरा ही अन्धेरा होगा और कोई सूचना न होगी जो बता सके की यहाँ क्या था / इस समय के गुजरने के बाद पुनः जहां नयी पृथ्वी बनी होती है वह अबतक इस स्थिति में आ गयी होती है कि वहाँ जीव उत्पन हो सकते हैं और वहाँ जीव उत्पन्न होते हैं / आज जैसा यहाँ है कल यहाँ वैसा नहीं रहेगा लेकिन परसों कहीं और ऐसा ही होगा / गीता में वही बात है जो आज पार्टिकल विज्ञान एवं क्वांटम विज्ञान में है लेकिन गीता की बातों में स्पष्ट की कमी जरूर है क्यों की आज जो गीता है उसे हम जैसे लोग पीछले पांच हजार सालों से बदल रहे हैं लेकिन यदि अप गहराई में गीता देखेंगे तो आप को जरुर आनंद मिलेगा /
====ओम्---- -
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