गीता अध्याय –06
[ ग ] योग – संन्यास
गीता में आप सूत्र 6.1 – 6.6 तक को देखा अब इनसे साथ गीता के निम्न सूत्रों को भि देखा लें जिनका सम्बन्ध गीता के सूत्र 6.1 – 6.6 से है ------
गीता सूत्र – 4.41
योग सन्यस्त कर्माणम् ज्ञान सज्छिन्न संशयम्/
आत्मवन्तं न कर्माणि निबधंति धनञ्जय/
Those who are keeping expectation in his action and having doubt , he is always slave of his action .
वह जो कर्म फल की कामना से कर्म करता है और संदेह युक्त जिसकी बुद्धि है वह अपनें कर्मों का गुलाम होता है//
गीता सूत्र – 5.2
संन्यासः कर्म योगः च निः श्रेयस करौ उभौ तयो: /
तयो:तु कर्म संन्यस्यात् कर्म योग:विशिष्यते//
action renunciation and Action – Yoga both lead to salvation .
कर्म संन्यास एवं कर्म योग दोनों मुक्ति पथ हैं//
ऊपर दिए गए गीता के दो सूत्र कह रहे हैं--------
कामना एवं संदेह रखनें वाली बुद्धि वाले मनुष्य से जी कर्म होते हैं वह उनका गुलाम बन कर रहता है और कर्म संन्यास एवं कर्म योग दोनों मुक्ति पथ हैं//
Gita – sutra as given above say …....
A man who does work with desire and doubtful state of mind and intelligence he remains slave of his works and action renunciation and action – yoga both lead to salvation .
गीता के इन दो सूत्रों से आप समझ रहे होंगे कि कर्म योग एवं कर्म संन्यास दो अलग – अलग मार्ग हैं लेकिन इसी बात नहीं हैं ; बिना कर्म में उतरे कर्म संन्यास का ख्वाब देखनें वाला कभी कर्म संन्यासी नहीं बन सकता और बिना कर्म संन्यासी बनें निष्कर्म – सिद्धि नहीं मिलती जो ज्ञान योग की परा निष्ठा है / कर्म योग की सिद्धि में कर्म अकर्म दिखनें लगते हैं और अकर्म में कर्म दिखनें लगता है अर्थातमनुष्य कि दिशा बदल जाती है //
सभीं बातों की एक बात
जो आप से हो रहा हो उसका द्रष्टा बनें रहिये
जो आप से हो रहा हो उसके पीछे किसी कारण की ऊर्जा नहीं होनी चाहिये
जो आप कर रहे हैं उनके पीछेचाह , क्रोध , अहंकार , मोह , लोभ , भयमें से किसी एक की ऊर्जा नहीं होनी चाहिए //
=====ओम्=====
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