Wednesday, May 30, 2012

गीता में अर्जुन के आठवें प्रश्न का भाग दो

गीता में अर्जुन के आठवें प्रश्न का दूसरा भाग इस प्रकार है-----

अर्जुन पूछ रहे हैं … ......

किम् अध्यात्मम्?

अर्थात अध्यात्म क्या है ?

उत्तर में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं -----

स्वभाव:अध्यात्मम् उच्यते …........गीता श्लोक –8.3

अर्जुन पूछ रहे हैं , “ अध्यात्म किसको कहते हैं ? “ और प्रभु उत्तर में मात्र इतना कह रहे हैं , “ मनुष्य का स्वभाव ही उसका अध्यात्म है / “ अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर मनुष्य का स्वभाव क्या है ?

गीता में यदि आप गीता सूत्र – 18..59 , 18.60 , 3.5 , 3.27 एवं 3.33 को देखें तो यह बात सामनें आती है … ......

"तीन गुणों की ऊर्जा से मनुष्य का स्वभाव बनता है और स्वभाव से कर्म होता है/ “

गुण साधना में गुणों के प्रति होश बना कर जब साधक गुणातीत स्थिति में पहुँचता है तब उसे वह सब अकर्म दिखनें लगता है जिसे वह अभीं तक कर्म समझता रहा होता है और अभीं तक जिनको अकर्म समझता रहा होता है वह कर्म के रूप में दिखनें लगता है[यहाँ आप गीता सूत्र –4.18को भी देखें] /

गीता की साधना मूलतः गुण साधना है जहाँ --------

  • भोग से योग में प्रवेश करना होता है

  • योग में वैराज्ञ से उनका सम्बन्ध जुड़ता है

  • वैराज्ञ में उसे ज्ञान की प्राप्ति मिलती है

  • ज्ञान वह है जिससे क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध होता है

  • ज्ञानी कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म देखता है

और इस प्रकार …...

गुणातीत में पहुँच कर वह साधक कुछ इस प्रकार का हो जाता है … ...

या निशा सर्वभूतानां तस्याम् जागर्ति संयमी

यस्याम् जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने:

और इस प्रकार के योगी का स्वभाव अध्यात्म होता है //

==== ओम्========





Sunday, May 27, 2012

गीता में अर्जुन का आठवां प्रश्न भाग एक

पिछले अंक में गीता श्लोक – 8.1 एवं 8.2 में हमनें देखा कि अर्जुन एक साथ आठ प्रश्न कर रहे थे और उन प्रश्नों में पहला प्रश्न था ---------

किम् तत् ब्रह्म?अर्थात क्या है,वह ब्रह्म? [ What is that Brahm ? ]

आदि शंकर [ आदि शंकराचार्य – 788 CE – 820 CE ] अपनें अल्प कालीन भौतिक जीवन में अद्वैत्य के नाम पर ब्रह्म की स्मृति उस समय के मूल सांख्य – योग , मिमांस , जैन एवं बुद्ध परम्परा के लोगों के ह्रदय में जगाते रहे / जैसे जैसे उनका यह प्रयाश चक्रवात की भांति फैलनें लगा और जिन लोगों की आस्ता सांख्य , न्याय , मिमांस , जैन एवं बुद्ध परम्पराओं में थी वे लोग आदि शंकर के पीछे - पीछे चलनें लगे उनके भौतिक जीवन का अंत आगया और उनके प्रयाश की कमर यहीं टूट गयी / आज जो दसनामी सम्प्रदाय चल रहा है वह आदि शंकर की ही देन है / आदि शंकर के जानें के बाद भारत में धीरे - धीरे निराकार ब्रह्म की सोच समाप्त होनें लगी और एक तरफ भारत गुलाम होनें लगा और दूसरी तरफ यहाँ के लोग भक्ति आंदोलन में नाच - नाच कर अपनी गुलामी को देखते रहे / बुद्ध – महावीर एवं सांख्य दर्शन ठीक वैसे थे उन दिनों जैसे यूनान का दर्शन था , जिससे आज का विज्ञान विकसित हुआ है लेकिन भारत न बुद्धि योग में आगे बढ़ कर विज्ञान की मजबूत नीव रख सका और न ही पूर्ण रूप से भक्ति का आनंद ले सका , कहते हैं न – जाति रहे हरि भजन को ओटन लगे कपास , कुछ – कुछ ऎसी स्थिति यहाँ की हो गयी / कल हम लोग भौतिक स्तर पर पश्चिम के गुलाम थे और आज बुद्धि स्तर पर उनकी गुलामी ढो रहे हैं /

गीता में ब्रह्म से समन्धित निम्न श्लोक हैं जिनको आप स्वयं देखे … .....

गीता श्लोक –8.3 , 13.3 , 13.12 , 13.13 , 13.14 , 13.15 , 13.16 , 13.17

ये श्लोक कहते हैं----------

ब्रह्म , प्रकृति एवं पुरुष [ भगवान श्री कृष्ण ] तीन के योग का फल है यह जीव जहाँ ब्रह्म एवं प्रकृति अलग अलग नहीं हैं प्रभु श्री कृष्ण के अधीन हैं और उनसे ही हैं / ब्रह्म और प्रभु श्री कृष्ण को कुछ इस प्रकार से समझा जा सकता है ----- प्रभु श्री कृष्ण जिनको अनेक साकार रूपों में हम जानते हैं उनका निराकार आयाम ही ब्रह्म है / ब्रह्म से ब्रह्म में उनकी माया है , माया तीन गुणों से है जिसमें साकार रूप से नित पल बदलाव से गुजर रही प्रकृति को हम देख रहे हैं और यह प्रकृति ही भौतिक रूप से साकारों की जननी के रूप में दिखती है /

अगले अंक में इस प्रश्न का अगला भाग देखा जाएगा


====== ओम्=======


Thursday, May 24, 2012

गीता में अर्जुन का आठवां प्रश्न

गीता में अर्जुन अपनें आठवें प्रश्न के रुप में जानना चाहते हैं … .....
गीता श्लोक –8.1 + 8.2
किं तद्ब्रह्म किं अध्यात्मम् किं कर्म पुरुषोत्तम /
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किं उच्यते //

अधियज्ञ:कथम् कः अत्र देहे अस्मिन् मधुसूदन/
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेय:असि नियतात्मभिः//
अर्जुन यहाँ पूछ रहे हैं:
हे पुरुषोत्तम ! ब्रह्म क्या है ? अध्यात्म क्या है ? कर्म क्या है ? अधिभूत क्या कहा गया है ? अधिदैव किसको कहते हैं ? यहाँ अधियज्ञ कौन है और यह इस देह में कैसे है ? और युक्त चित्त वाले पुरुषों द्वारा आप अंत समय में कैसे जानें जाते हैं ?
अर्जुन यहाँ एक साथ आठ प्रश्न कर रहे हैं और आप कुछ दिन अर्जुन के उस मन की स्थिति में झाँकने का प्रयत्न करे जहाँ से ऐसे प्रश्न उठ रहे हैं ? प्रश्नों को देखनें से ऐसा नहीं लगता की अर्जुन प्रभु श्री कृष्ण को दिल से प्रभु समझते हैं / अर्जुन के इन प्रश्नों से ऐसा लगता है जैसे कोई दो कुछ – कुछ जानें - पहचानें लोग एक दूसरे की बुद्धि की लम्बाई , चौड़ाई और गहराई माप रहे हों /
हम यहाँ ब्रह्म , अध्यात्म एवं कर्म को गीता में देखनें जा रहे हैं -------
प्रभु कहते हैं:------
परमं अक्षरं ब्रह्मं
स्वभावः अध्यात्मं
भूत भावः उद्भव करो विसर्गः इति कर्म : ------- गीता श्लोक – 8.3
आज यहीं पर विश्राम करते हैं , अगले अंक में देखेंगे परमं अक्षरं ब्रह्मम् गीता में क्या है ?
===== ओम्======

Wednesday, May 16, 2012

गीता में अर्जुन का सातवाँ प्रश्न

गीता श्लोक –6.37से6.39

अर्जुन प्रभु श्री कृष्ण से जानना चाह रहे हैं ----------

हे श्री कृष्ण!जो योग में श्रद्धा रखनें वाले हैं किन्तु संयमी नहीं हैं और अंत समय में योग से विचलित हो जाते हैं तथा योग – सिद्धि से दूर रह जाते हैं,ऐसे योगी मृत्यु के बाद कौन सी गति प्राप्त करते हैं?

अर्जुन के इस प्रश्न के सम्बन्ध में गीता में हमें 38 [ श्लोक – 6.38 से 7. 30 तक ] श्लोकों को देखना होगा क्योंकि अर्जुन का अगला प्रश्न गीता श्लोक – 8.1 से प्रारम्भ होता है /

प्रभु श्री कृष्ण इस प्रश्न के सम्बन्ध में कहते हैं … .....

गीता श्लोक –7.3

मनुष्याणाम् सहस्त्रेषु कश्चित् यतति सिद्धये

यतताम् अपि सिद्धानाम् कश्चित् माम् वेत्ति तत्त्वत:

अर्थात …..

हजारों लोगों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए कोशीश करता है और उनमें से कोई मुझे तत्त्व से समझनें में सफल होता है//

प्रभु कहते हैं ….....

दो प्रकार के योगी हैं ; एक ऐसे योगी हैं जो वैराज्ञ में पहुँच जाते हैं लेकिन देह त्यागनें के समय वे योग – सिद्धि को नहीं प्राप्त कर पाते और दूसरे ऐसे योगी हैं जो वैराज्ञ प्राप्ति से पहले ही योग खंडित स्थिति में देह छोड़ जाते हैं / ऎसी स्थिति में वैराज्ञ प्राप्त योगी सीधे किसी योगी कुल में जन्म लेता है और बचपन से वह वैराज्ञ से आगे की साधना में लीन दिखता है ; उसकी पीठ भोग की ओर बचपन से रहती है / दूसरे योगी वे हैं जिनका योग खंडित हो जाता है तब जब वे अभीं वैराज्ञ से दूर रहते हैं और उनका अंत आ जता है , ऐसे योगी पहले स्वर्ग जाते हैं , स्वर्ग में वे ऐश्वर्य भोगों को भोगते हैंऔर पुनः मृत्यु लोक में जन्म लेते हैं और साधना में लीन होनें की चेष्ठा करते हैं /

यहाँ एक बात आप ध्यान से देखे जो वेदों से एक दम भिन्न है;वेदों में स्वर्ग प्राप्ति को अहम् माना गया है और गीता में परम गति को सर्बोपरि कहा गया है/गीता स्वर्ग को भी भोग का एक माध्यम समझता है और इस प्रकार इसे वेदान्त कि संज्ञा मिली हुयी है/


=====ओम्======


Saturday, May 12, 2012

गीता में अर्जुन का छठवां प्रश्न

गीता श्लोक –6.33

यः अयं योगः त्वया प्रोक्त : साम्येन मधुसूदन /

एतस्य अहम् न पश्यामि चंचलात्वात् स्थितिम् स्थिराम् //

इस श्लोक को कुछ इस प्रकार से देखें … ....

मधुसूदन यः अयं योगः त्वया साम्येन प्रोक्ता

चंचलत्वात् अहम् एतस्य स्थिराम् स्थितिम् न पश्यामि /

हिंदी भावार्थ -----

हे मधुसूदन!जो यह समभाव योग आपने बताया उसे मैं अपनें मन की चंचलता के कारण समझनें में स्वयं को असमर्थ पा रहा हूँ//

इस पश्न के सम्बन्ध में प्रभु कहते हैं ------

गीता श्लोक –6.35

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहम् चलम्/

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते//

अर्थात … ..

हे महाबाहो!तुम जो कह रहे हो वह सत्य है लेकिन मन की चंचलता अभ्यास योग से मिले वैराज्ञ प्राप्ति से दूर होती है और मन परम सत्य पर स्थिर हो जाता है//

कुछ लोग इस सूत्र को कुछ इस प्रकार से देखते हैं …..

मन की चंचलता अभ्यास एवं वैराज्ञ से शांत होती है ; यह बात सुननें एवं पढनें में अति सरल दिखती है लेकिन करनें में यह दिशाहीन मार्ग की तरह दिखती है / वैराज्ञ कोई वास्तु नहीं कि जब चाहा प्राप्त कर लिया , गए काशी - मथुरा और बन गए सर मुडा कर वैरागी , वैराज्ञ का अर्थ है वह स्थिति जहाँ राग कि छाया तक न पड़े और यह संभव है अभ्यास योग से / अभ्यास योग क्या है ? कर्म में कर्म बंधनों की समझ भोग तत्त्वों की आसक्ति से दूर रखता है और सभीं कर्म आसक्ति रहित समभाव में होते रहते हैं , इस स्थिति को प्राप्त करनें वाला कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म की झलक पाता रहता है और उसके सभीं कर्म मंगल मय होते चले जाते हैं / यह तब सभव होता है जब … ...

विषय,इंद्रिय,मन,बुद्धि के स्वभाव को देखनें का अभ्यास किया जाए और भोग तत्त्वों जैसे आसक्ति,कामना,क्रोध,लोभ,मोह,भय,आलस्य एवं अहँकार को समझा जाए/

भोग तत्त्वों का द्रष्टा , अपने कर्मों का कर्ता नही द्रष्टा होता है और वह तीन गुणों को कर्ता देखता है / ध्यान , तप , सुमिरन , पूजा , पाठ ये सब अभ्यास – योग के माध्यम हैं /

====ओम्======



Tuesday, May 8, 2012

गीत में अर्जुन का पांचवां प्रश्न

गीता श्लोक –5.1

संन्यासं कर्मणाम् कृष्ण पुनः योगं च शंससि/

तत् श्रेयः एतयो:एकं तत् में ब्रूहि सुनिश्चितम्//

भावार्थ : ----

आर्जुन पूछ रहे हैं …....

हे कृष्ण ! आप कर्म – संन्यास की और फिर कर्म – योग की प्रशंसा करते हैं , आप कृपया मुझे उसके सम्बन्ध में बताएं जो मेरे लिए कल्याणकारी हो /

अर्जुन का पहला प्रश्न था [ गीता श्लोक – 2.54 ] कुछ इस प्रकार … ...

स्थिर प्रज्ञ योगी की पहचान क्या है ? , दूसरा प्रश्न था [ गीता श्लोक – 3.1 , 3.2 ] - यदि कर्म से उत्तम ज्ञान है तो फिर आप मुझे कर्म में क्यों उतारना चाह रहे हैं ? , तीसरा प्रश्न अर्जुन का इस प्रकार से है [ गीता श्लोक – 3.36 ] मनुष्य किससे सम्मोहित हो कर पाप कर्म करता है ? और अर्जुन का चौथा प्रश्न है , आप का जन्म वर्त्तमान में हुआ है और सूर्य का जन्म अति प्राचीन है अतः आप सूर्य को कम – योग का ज्ञान कैसे दिया ?

अर्जुन पहले स्थिर प्रज्ञ योगी की पहचान पूछते हैं जबकी उनको यह पता नहीं की स्थिर प्रज्ञता क्या

है? ,अर्जुन इसी तरह कर्म एवं ज्ञान की बात करते हैं जबकी उनको न तो कर्म की परिभाषा मालूम है और न ही ज्ञान की क्योंकि कर्म की परिभाषा अध्याय आठ में प्रभु देते हैं और ज्ञान की परिभाषा अध्याय तेरह में दी गयी है/

अर्जुन के पांचवें प्रश्न के सम्बन्ध में हमें गीता श्लोक – 5.2 से 6.32 तक को देखना चाहिए लेकिन फिर भी प्रश्न का ठीक – ठीक उत्तर यहाँ नहीं दिखता , उत्तर तो उसे मिलता है जो सम्पूर्ण गीता - सागर में तैरता है / कर्म , कर्म – योग , कर्म वैराज्ञ , ज्ञान और परम गति [ निर्वाण ] इनका आपस में गहरा सम्बन्ध है जिसको समझना ही कर्म – योग को पकड़ना है / कर्म में कर्म की पकड़ की समझ भोग कर्म को योग कर्म में बदलती है / कर्म योग में पहुंचा योगी धीरे - धीरे कर्म तत्त्वों से वैराज्ञ प्राप्त कर के ज्ञान प्राप्त करता है और ज्ञान में जिसका बसेरा होता है वहनिर्वाणप्राप्त करता है /

कर्म एक मार्ग हैजहाँ काम से राम तक की यात्रा का नाम है कर्म – योग / कर्म योग की सिद्धि का फल है ज्ञान और ज्ञान सीधे निर्वाण में पहुंचाता है तब जब उसके जीवन में अहँकार की हवा न लगे //

=====ओम्=====



Sunday, May 6, 2012

गीता में अर्जुन का चौथा प्रश्न

अपरं भवतः जन्म परम् जन्म विवस्वतः/

कथं एतत् विजानीयाम् त्वं आदौ प्रोक्तवान् इति//

भावार्थ

आपका जन्म अर्वाचीन है[अर्थात वर्तमान में हुआ है]और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है अर्थात कल्प के आदि में हो चुका था,मैं इस बात को की समझूं कि आप सूर्य को यह योग बताया था?

यह योग का क्या अर्थ है?

अर्जुन का तीसरा प्रश्न था , मनुष्य पाप कर्म क्यों करता है ? और प्रभु कहते हैं , काम का सम्मोहन मनुष्य को पाप कर्म करनें को मजबूर करता है और गीता अध्याय तीन के श्लोक 3.37 से 3.42 तक काम नियंत्रण से सम्बंधित हैं / प्रभु काम के सम्बन्ध में कहते हैं , हे अर्जुन ! काम के सम्मोहन से मात्र वह बचा रहता है जो आत्मा केंद्रित होता है / काम का सम्मोहन बुद्धि तक रहता है अतः इंद्रिय , मन एवं बुद्धि आधारित ब्यक्ति काम के सम्मोहन से नहीं बच सकता / बिषय , इंद्रिय , मन एवं बुद्धि की साधाना जब पकती है तब वह ब्यक्ति आत्मा केंद्रित होता है और गुणातीत स्थिति में काम का द्रष्टा बन जाता है /

गीता में अर्जुन के चौथे प्रश्न के सम्बन्ध में आप गीता सूत्र – 4.5 से 4.42 तक को देखें / प्रभु कहते हैं , हे अर्जुन ! मेरे और तेरे अबसे पहले अनेक बार जन्म हो चुके हैं [ सूत्र – 4.5 ] , मेरे सभीं जन्म मेरी स्मृति में हैं लेकिन तेरी स्मृति में तेरे जन्मों की बात नहीं है / गीता में गीता श्लोक – 4.5 में पीछले जन्मों की स्मृति की बात कही जा रही है जिसको बुद्ध आलय विज्ञान और महावीर जातिस्मरण का नाम दिए थे / ईशापूर्व पांचवीं एवं छठवीं शताब्दी तक योग के आधार पर योगी लोग अपनी पिछली स्मृतियों में वापिस लौट सकते थे लेकिन अब यह योग लुप्त हो चुका है / काम नियंत्रण योग के सम्बन्ध में प्रभु कहते हैं . यह योग अब लुट हो चुका है लेकिन मैं इसके सम्बन्ध में तुमको

बताता हूँ / गीता सूत्र – 7.11 में प्रभु कहते हैं ---- धर्माविरुद्धः भूतेषु कामः अस्मि अर्थात धर्म के अनुकूल जो काम है वह मैं हूँ / काम – वासना यह दो शब्द एक साथ देखे जाते हैं लेकिन इनकी समझमनुष्य को भोगी से योगी बनाती है / जब तक काम में वासना की ऊर्जा है तबतक वह काम राजस गुण का एक तत्त्व रहता है अर्थात यह काम भोग में खीचता हैऔरजब काम में वासना की अनुपस्थिति हो जाती है तब वह काम काम – योग बन जाता है और वह भोग की ओर नहीं राम की ओर लेजाता है /


===== ओम्=======


Thursday, May 3, 2012

गीता में अर्जुन का तीसरा प्रश्न

गीता श्लोक –3.36

अथ केन प्रयुक्तः अयम् पापं चरति पूरुषः/

अनिच्छन् अपि वार्ष्णेय बलात् इव नियोजितः//

हे कृष्ण ! फिर यह मनुष्य न चाहते हुए भी बलात् लगाए हुए की भांति किससे प्रेरित हो कर पाप का आचरण करता है ?

अर्थात

मनुष्य पाप कर्म करनें के लिए क्यों बाध्य है?

Why does a man commit sins ?

प्रश्न का उत्तर

प्रश्न के उतर के रूप में मात्र एक सूत्र [ सूत्र – 3.37 ] स्वयं में पूर्ण है लेकिन गीता में अर्जुन का अगला प्रश्न श्लोक – 4.4 से बनता है अतः श्लोक – 3.36 से श्लोक – 4.4 तक [ 11 श्लोक ] र्जुन के इस प्रश्न के सन्दर्भ में देखे जानें चाहिए / अब देखिये प्रभु का उत्तर जो इस प्रकार से है -------

श्लोक –3.36

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः/

महाशनो महापाप्मा विद्धि एनम् इह वैरिणम्//

अर्थात

काम का रूपांतरण क्रोध है,काम राजस गुण का मूल तत्त्व है

काम भोग करनें से तृप्त नहीं होता और यह पाप करनें की ऊर्जा पैदा करता है/

Passion a natural mode generates sex energy , sex energy pulls into sins if one is not aware of it .

कुरुक्षेत्र में दोनों सेनाओं के मध्य जहाँ संभवतः मानव इतिहास का सबसे गंभीर युद्ध के बादल सघन हो रहे हैं , वहाँ ऎसी स्थिति में भगवान श्री कृष्ण जो एक सांख्य – योगी भी हैं , अर्जुन को बता रहे हैं कि हे अर्जुन ! मनुष्य पाप कर्म में काम ऊर्जा के सम्मोहन के कारण से उतरता है /

राजस गुण भोग की ऊर्जा का परम रसायन है जो आसक्ति , काम , कामना , क्रोध एवं लोभ की ऊर्जा समय के अनुकूल पैदा करता रहता है / नुष्य काम ऊर्जा से पैदा होता है , काम की तृप्ति उसके जीवन का केंद्र बन जाती है और जब वह मरता है तब उसका प्राण या तो मल इंद्रिय से या मूत्र इंद्रिय से निकलता है / मरे हुए ब्यक्ति का आप कभीं निरिक्षण करना और उसकी पांच ज्ञान इंद्रियों को और पांच कर्म इंद्रियों को देखना , वह इंद्रिय जो असमान्य स्थिति में हो समझना उसका प्राण उस इंद्रिय से निकला है / वह जो योगी है ; जो प्रभु में अपना बसेरा बना चुका होता है उसका प्राण या तो आज्ञाचक्र से निकलता है या फिर सहस्त्रार चक्र से जो क्रमशः मस्तक के मध्य भाग में एवं सिर में उस स्थान पर होता है जहाँ लोग चोटी रखते हैं / योगी के मृत देह को यदि कुछ दिन योंही रखा जाए तो उस से बदबू नहीं आती और भगी की लाश से पांच घंटे बाद बदबू आनें लगती है /

====ओम्========


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