गीता श्लोक –6.37से6.39
अर्जुन प्रभु श्री कृष्ण से जानना चाह रहे हैं ----------
हे श्री कृष्ण!जो योग में श्रद्धा रखनें वाले हैं किन्तु संयमी नहीं हैं और अंत समय में योग से विचलित हो जाते हैं तथा योग – सिद्धि से दूर रह जाते हैं,ऐसे योगी मृत्यु के बाद कौन सी गति प्राप्त करते हैं?
अर्जुन के इस प्रश्न के सम्बन्ध में गीता में हमें 38 [ श्लोक – 6.38 से 7. 30 तक ] श्लोकों को देखना होगा क्योंकि अर्जुन का अगला प्रश्न गीता श्लोक – 8.1 से प्रारम्भ होता है /
प्रभु श्री कृष्ण इस प्रश्न के सम्बन्ध में कहते हैं … .....
गीता श्लोक –7.3
मनुष्याणाम् सहस्त्रेषु कश्चित् यतति सिद्धये
यतताम् अपि सिद्धानाम् कश्चित् माम् वेत्ति तत्त्वत:
अर्थात …..
हजारों लोगों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए कोशीश करता है और उनमें से कोई मुझे तत्त्व से समझनें में सफल होता है//
प्रभु कहते हैं ….....
दो प्रकार के योगी हैं ; एक ऐसे योगी हैं जो वैराज्ञ में पहुँच जाते हैं लेकिन देह त्यागनें के समय वे योग – सिद्धि को नहीं प्राप्त कर पाते और दूसरे ऐसे योगी हैं जो वैराज्ञ प्राप्ति से पहले ही योग खंडित स्थिति में देह छोड़ जाते हैं / ऎसी स्थिति में वैराज्ञ प्राप्त योगी सीधे किसी योगी कुल में जन्म लेता है और बचपन से वह वैराज्ञ से आगे की साधना में लीन दिखता है ; उसकी पीठ भोग की ओर बचपन से रहती है / दूसरे योगी वे हैं जिनका योग खंडित हो जाता है तब जब वे अभीं वैराज्ञ से दूर रहते हैं और उनका अंत आ जता है , ऐसे योगी पहले स्वर्ग जाते हैं , स्वर्ग में वे ऐश्वर्य भोगों को भोगते हैंऔर पुनः मृत्यु लोक में जन्म लेते हैं और साधना में लीन होनें की चेष्ठा करते हैं /
यहाँ एक बात आप ध्यान से देखे जो वेदों से एक दम भिन्न है;वेदों में स्वर्ग प्राप्ति को अहम् माना गया है और गीता में परम गति को सर्बोपरि कहा गया है/गीता स्वर्ग को भी भोग का एक माध्यम समझता है और इस प्रकार इसे वेदान्त कि संज्ञा मिली हुयी है/
=====ओम्======
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