Tuesday, April 26, 2011

गीता अध्याय –04

सामान्य – सूत्र

गीता अध्याय चार को हम यहाँ चार भागों मे देख रहे हैं जिनमें से पहला भाग है,सामान्य सूत्रों का

और उनमें अब हम अगला सूत्र देखनें जा रहे हैं--------

सूत्र – 4.6

अजः अपि सन् अब्यय आत्मा भूतामाम् ईश्वरः अपि सन्/

प्रकृतिम् स्वाम् अधिष्ठाय संभवामि आत्म – मायया//

इस सूत्र में पभु श्री कृष्ण कह रहे हैं … ......

मैं अजन्मा , सभी भूतों का ईश्वर एवं अब्यय हूँ लेकिन समय – समय पर अपनें निराकार

स्वरुप से साकार स्वरुप को , मैं धारण कर्ता रहता हूँ / निराकार से साकार में आना और पुनः साकार से निराकार में जाना , यह संभव होता है हमारी योग – माया से /


Lord Krishna says …....

Though I am birthless , immortal and Lord of ll beings , I manifest Myself through My own

divine potency [ Yoga – Maya ] .


Prakritim adhishthaya :

The meaning of this may be understood as such …..

Established in My own nature .


परमात्मा को निराकार से साकार रूप मे क्यों आना पड़ता है?

परमात्मा को अपनी योग माया से निराकार से साकार में आनें का कौन जिम्मेदार है?

आप इन दो प्रश्नों के सन्दर्भ में स्वयं में झांकते रहें और पुनः हम मिलेन्हे इस अध्याय के अगले सूत्र के साथ//


=====ओम=======


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