गीता अध्याय –04
भाग –02
पिछले अंक में बताया गया कि इस अध्याय के सूत्रों को चार भागों में देखा जाएगा |
आज हम यहाँ भाग – 02 के अंतर्गत सामान्य सूत्रों में निम्न सूत्रों में से कुछ को देखनें
जा रहे हैं |
[क]सामान्य सूत्र
4.1 | 4.2 | 4.3 | 4.4 | 4.5 |
4.6 | 4.7 | 4.8 | 4.9 | 4.12 |
7.16 | 9.25 | 17.4 | 14.18 | … .... |
सूत्र –4.1 , 4.2 , 4.3
इन तीन सूत्रों के माध्यम से प्रभु अर्जुन को बता रहे हैं-----------
काम – योग का ज्ञान सबसे पहले मैं सूर्य को दिया था , बाद में यह योग धीरे - धीरे लुप्त होनें
लगा और अब यह पूर्ण रूपेण लुप्त हो चूका है |
आज मैं इस योग को तुम को बता रहा हूँ क्योंकि तूं मेरे शिष्य एवं मित्र हो |
अर्जुन[गीता सूत्र –4.4 ]प्रभु से कहते हैं--------
हे प्रभु ! सूर्य का जन्म तो अति प्राचीन है , वे सृष्टि के के प्रारम्भ में जन्म लिए और आप
वर्तमान में हैं फिर आप काम – योग की शिक्षा सूर्य को कैसे दिए होंगे ?
यहाँ तक इस अध्याय में दो बातें देखनें को मिली ; …..........
* * सृष्टि और सूर्य का गहरा सम्बन्ध है
**आज जो हैं,वे सभीं हैं ही नहीं धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं अर्थात …....
आज जो ज्ञान है … ....
आज जो भूत हैं … ....
आज जो प्रकृति है … ..
आज जो कुछ भी है , वह सब धीरे - धीरे समाप्त हो रहा है ||
======ओम=========
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