Friday, April 1, 2011

काम क्रोध





गीता अध्याय – 03



गीता सूत्र –3.36



यहाँ अर्जुन प्रभु से जानना चाहते हैं ….....................


मनुष्य पाप क्यों करता है ?


यहाँ गीता के निम्न श्लोकों के माध्यम से अर्जुन के प्रश्न के सन्दर्भ में जो बातें प्रभु कहते हैं , उनको समझना उत्तम रहेगा






































































3.36


3.37


3.38


3.39


3.4


3.41


3.42


3.43


6.27


5.23


5.26


2.62


16।21


10.28


7.11





अध्याय03में अर्जुन का यह दूसरा प्रश्न है; पहले प्रश्न में अर्जुन जानना चाहा था , यदि


ज्ञान कर्म से उत्तम हा फिर आप मुझको कर्म में क्यों उतारना चाहते हैं?


ज्योंही अर्जुन का प्रश्न समाप्त होता है कि ….....


मनुष्य पाप क्यों करता है ? तुरंत प्रभु बोल पड़ते हैं --------


काम:एष:क्रोध:एष:


रजोगुण समुद्भव:


महा-अशन:महा-पाप्मा


विद्धि एनं इह वैरिनम ---- गीता - 3.37


अर्थात …...


काम ऊर्जा का रूपांतरण ही क्रोधहै


क्रोध में मनुष्य की बुद्धि में ज्ञान अज्ञान से ढक जाता है और अज्ञान में मन – बुद्धि


अस्थिर हो उठते हैं अस्थिर मन – बुद्धि यह नहीं समझते कि क्या पाप है और क्या पाप नहीं


है ?


काम – क्रोध दोनों राजस गुण के मूल तत्त्व हैं



प्रभु का नपा - तुला उत्तर है तो छोटा लेकिन अपनें में ज्ञान सागर को समेटे हुए है ,


प्रभु कि बात को आप अपनें जीवन में खोजते रहें आप को यह खोज प्रभु तक पहुंचा देगी




====== ओम ========




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