गीता अध्याय – 04
दो शब्द
इस अध्याय में प्रभु श्री कृष्ण के 41 श्लोक हैं और प्रश्न के रूप में
अर्जुन का एक श्लोक है, [श्लोक – 4.4 ]
अध्याय – 03 में अर्जुन का जो दूसरा प्रश्न है
[मनुष्य न चाहते हुए भी पाप कर्म क्यों कर्ता है ? ] ,
उसके सन्दर्भ में यह अध्याय है
अध्याय – 03 में प्रभु अर्जुन के प्रश्न के उत्तर में कहा है .......
मनुष्य की राजसगुण की ऊर्जा जो काम के रूप में होती , उसका रूपांतरण क्रोध है
और क्रोध के सम्मोहन में मनुष्य न चाहते हुए भी पाप में उतरता
प्रभु कहते हैं .........
सृष्टि के प्रारम्भ में मैं सूर्य को काम साधना के सम्बन्ध में बताया था बाद में यह साधना
[योग] आगे बढती हुयी धीरे-धीरे लुप्त होती गयी और अब पूर्ण रूप से
से लुप्त हो चुकी है आज मैं इस योग को तुमको बता रहा हूँ क्योंकि
तूं मेरा मित्र एवं शिष्य दोनों हो
हम गीता के इस अध्य को निम्न चार भागों में देखने जा रहे हैं …...........
[क]सामान्य - सूत्र
[ख]योग – सूत्र
[ग]यज्ञ – सूत्र
[घ]ध्यान विधियों से सम्बंधित सूत्र
गीता कहता है-----------
मन माध्यम से निर्वाण प्राप्ति का नाम है,ध्यान
=====ओम============
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