गीता अध्याय - 04
योग – सूत्र
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श्लोक18.54 – 18.55
पीछले अंक में गीता सूत्र 4.18 के सन्दर्भ में कुछ अन्य अध्यायों के सूत्रों को देखा गया था और
गीता सूत्र – 18.54 एवं 18.55 भी उसी संदर्भ में हैं /
सूत्र –18.54
प्रभु कहते हैं ----
मेरा परा भक्त कामना रहित होता है/
सूत्र –18.55
प्रभु यहाँ कह रहे हैं ------
मेरा परा भक्त ही मुझे तत्त्व से समझता है/
प्रभु की बात को एक बार और देखते हैं … ...
प्रभु कहते हैं , हे अर्जुन ! मेरा परा भक्त कामना रहित होता है और मुझ को तत्त्व से समझता है //
परा भक्त कौन होता है ?
परा भक्त बाहर – बाहर से ऐसा दिखता है जैसे किसी मंदिर की मूरत हो / वह लोगों के लिए
इस संसार मे होता है लेकिन अपनें लिए उका निवास प्रभु में होता है /
परा भक्त वह है------
जिसके पीठ पीछे भोग होता है,उसके नैनों में प्रभु बसे होते हैं और उसके दिल की
हर धडकन में प्रभु ही प्रभु होते हैं//
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी/
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने: //
गीता 2.69
=====ओम====
=====ओम====