गीता अध्याय –04
श्लोक –4 . 9
जन्म कर्म च मे दिब्यं एवम् यो वेत्ति तत्त्वतः/
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति स:अर्जुन//
हमारे दिव्य जन्म – कर्म को जो तत्त्व से समझ लेता है वह
आवागमन चक्र से मुक्त हो जाता है और मुझमें अपना बसेरा बना लेता है //
He who understand divine mystery of My birth and action is not born again
and he comes to Me .
प्रभु के जन्म – कर्म को तत्त्व से जानना क्या है?
तत्त्व से जानना उसे कहते हैं जिस पर कभीं कोई संदेह न हो
अर्थात
जिस जाननें में पूर्ण श्रद्धा हो,वह जानना तत्त्व से जानना है//
जिसका ज्ञान तन,मन एवम बुद्धि को तृप्त करे,वह ज्ञान तत्त्व से जानना होता है//
जिस पर मन – बुद्धि स्थिर हो रहे हों और जो परम सत्य के रूप में बुद्धि में बैठ गया हो
उसे तत्त्व से जानना कहते हैं//
======ॐ========
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