गीता अध्याय –04
[ख]योग सूत्र
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गीता सूत्र –4.11
इस सूत्र के माध्यम से प्रभु कह रहे हैं -------
जाकी रही भावना जैसी मेरी मूरत देखी तिन तैसी//
As a man approaches Me so I accept him .
परमात्मा को याद करना क्या है?
भावों से भावातीत में पहुँचना साधना है//
भावातीत की अनुभूति ही परम सत्य की अनुभूति है
जिसको ब्यक्त करना संभव नहीं
लेकिन जिसको छोड़ना भी संभव नहीं //
आप के जीवन में बहुत ऐसे लम्हें आये होंगे,जरा आप पीछे मुड कर देखो तो सही,
जिसको जब भी आप ब्यक्त करना चाहा होगा , आप को जो आनंद मिलना चाहिए रहा होगा वह नहीं मिल पाया होगा // क्या कभीं आप नें इस पर सोचा है कि ऐसा क्यों हो रहा था , आप को ?
जो लोग स्वयं को परमात्मा बना कर अपनी सेहत बना रहे हैं वे तो सही हैं
लेकिन जो उनकी चीलम भर रहे हैं उनके लिए सभीं द्वार बंद हैं/
परमात्मा को प्राप्त करनें के लिए दलाल की जरुरत नहीं,
भगवान क्या सिनेमा का टिकट है?
एकांत में अकेले बैठ कर अपनें को देखते रहो ,
ज्योंही वह घडी आएगी आप को उसकी झलक आप के ही मन मे दिखेगी //
परमात्मा एक ऊर्जा है जो निर्विकार ऊर्जा है और सर्वत्र है , बश उसे पकडनें लायक
स्वयं को बनाना होता है //
====ओम=====
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