गीता अध्याय –04
यहाँ गीता अध्याय चार को हम चार भागों मे देख रहे हैं ; पहला भाग सामान्य सूत्रों का था
जो पिछले अंक तक समाप्त हो चुका है , अब हम दूसरा भाग , योग – सूत्र को देखनें जा रहे हैं /
अध्याय चार के इस भाग में हम गीता के निम्न सूत्रों को देखनें वाले हैं ----------
410 | 256 | 1621 | 523 | 627 | 411 | 418 | 255 |
270 | 271 | 419 | 1820 | 1854 | 1855 | 420 | 421 |
422 | 423 | 435 | 1872 | 1873 | 252 | 103 | 437 |
438 | 441 | 442 | 61 | 61 | 1851 | 1852 | 1853 |
133 | 434 | | | | | | |
गीता के इन 34 सूत्रों के माध्यम से इस अध्याय के भाग – दो को हम देखनें जा रहे हैं /
गीता सूत्र –4.10
प्रभु इस सूत्र के माध्यम से अर्जुन को बता रहे हैं----------
राग , भय एवं क्रोध से अछूता प्रभु केंद्रित ब्यक्ति ही ज्ञानी होता है //
गीता के इस सूत्र को समझनें के लिए अगले निम्न चार सूत्रों को भी देखना होगा
[ 2.56 , 16.21 , 5 . 23 , 6 . 27 ]
Through Gita verse 4.10 the Supreme Lord Krishna says ….....
He who is untouched by passion , fear , anger and who is fully devoted to Me , remains purified
by the austerity of wisdom .
The man of wisdom understands praakriti and purusha [ the divine Maya and the Supreme One ] .
गीता कहता है [ गीता - 13.3 ] …....
क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है
====ओम=======
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