Wednesday, May 11, 2011

गीता अध्याय –04

यहाँ गीता अध्याय चार को हम चार भागों मे देख रहे हैं ; पहला भाग सामान्य सूत्रों का था

जो पिछले अंक तक समाप्त हो चुका है , अब हम दूसरा भाग , योग – सूत्र को देखनें जा रहे हैं /

अध्याय चार के इस भाग में हम गीता के निम्न सूत्रों को देखनें वाले हैं ----------

410

256

1621

523

627

411

418

255

270

271

419

1820

1854

1855

420

421

422

423

435

1872

1873

252

103

437

438

441

442

61

61

1851

1852

1853

133

434







गीता के इन 34 सूत्रों के माध्यम से इस अध्याय के भाग – दो को हम देखनें जा रहे हैं /

गीता सूत्र –4.10

प्रभु इस सूत्र के माध्यम से अर्जुन को बता रहे हैं----------

राग , भय एवं क्रोध से अछूता प्रभु केंद्रित ब्यक्ति ही ज्ञानी होता है //

गीता के इस सूत्र को समझनें के लिए अगले निम्न चार सूत्रों को भी देखना होगा

[ 2.56 , 16.21 , 5 . 23 , 6 . 27 ]

Through Gita verse 4.10 the Supreme Lord Krishna says ….....

He who is untouched by passion , fear , anger and who is fully devoted to Me , remains purified

by the austerity of wisdom .

The man of wisdom understands praakriti and purusha [ the divine Maya and the Supreme One ] .

गीता कहता है [ गीता - 13.3 ] …....

क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है

====ओम=======


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