Tuesday, May 24, 2011

गीता अध्याय- 04

[ ] योग – सूत्र

गीता सूत्र - 4.18

यहाँ प्रभु कह रहे हैं … ...

वह जो कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है वह सभीं कर्मों को कर सकता है

और वह कर्मों का गुलाम नहीं बनाता//

He who sees action in inaction and inaction in action , he is wise among men , he is yogin

he is able to do all works and he is not controlled by his actions .


What is Akarma ?

Action without bondage without attachment and ego is Akarma .


काम कठिन है जीवन थोड़ा

रह रह कर जी घबडाये

गीता समझ में न आये

मैं क्या करूँ ?


गीता के इस सूत्र को समझना है तो गीता के निम्न सूत्रों को भी देखो--------

गीता सूत्र –2.55

कामना रहित कर्म स्थिर प्रज्ञ बनाता है /

गीता सूत्र –2.70

मन में उठ रही कामनाओं का जो द्रष्टा है , वह हाई स्थिर प्रज्ञ /

गीता सूत्र –2.71

कामना , अहंकार एवं ममता रहित स्थिर प्रज्ञ होता है /

गीता सूत्र –4.19

संकल्प रहित ब्यक्ति कर्म – बंधन से मुक्त होता है /

गीता सूत्र –18.2

कामना रहित एवं कर्म – फल का त्यागी संन्यासी होता है /

आप गीता के इन सूत्रों को अपना कर कर्म – योग में कदम रख सकते हैं //


=====ओम=======



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