गीता अध्याय- 04
[ ख ] योग – सूत्र
गीता सूत्र - 4.18
यहाँ प्रभु कह रहे हैं … ...
वह जो कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है वह सभीं कर्मों को कर सकता है
और वह कर्मों का गुलाम नहीं बनाता//
He who sees action in inaction and inaction in action , he is wise among men , he is yogin
he is able to do all works and he is not controlled by his actions .
What is Akarma ?
Action without bondage without attachment and ego is Akarma .
काम कठिन है जीवन थोड़ा
रह रह कर जी घबडाये
गीता समझ में न आये
मैं क्या करूँ ?
गीता के इस सूत्र को समझना है तो गीता के निम्न सूत्रों को भी देखो--------
गीता सूत्र –2.55
कामना रहित कर्म स्थिर प्रज्ञ बनाता है /
गीता सूत्र –2.70
मन में उठ रही कामनाओं का जो द्रष्टा है , वह हाई स्थिर प्रज्ञ /
गीता सूत्र –2.71
कामना , अहंकार एवं ममता रहित स्थिर प्रज्ञ होता है /
गीता सूत्र –4.19
संकल्प रहित ब्यक्ति कर्म – बंधन से मुक्त होता है /
गीता सूत्र –18.2
कामना रहित एवं कर्म – फल का त्यागी संन्यासी होता है /
आप गीता के इन सूत्रों को अपना कर कर्म – योग में कदम रख सकते हैं //
=====ओम=======
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