Sunday, May 29, 2011

गीता अध्याय - 04


योग – सूत्र

अगले श्लोक

श्लोक18.54 – 18.55




पीछले अंक में गीता सूत्र 4.18 के सन्दर्भ में कुछ अन्य अध्यायों के सूत्रों को देखा गया था और

गीता सूत्र – 18.54 एवं 18.55 भी उसी संदर्भ में हैं /

सूत्र –18.54

प्रभु कहते हैं ----

मेरा परा भक्त कामना रहित होता है/

सूत्र –18.55

प्रभु यहाँ कह रहे हैं ------

मेरा परा भक्त ही मुझे तत्त्व से समझता है/


प्रभु की बात को एक बार और देखते हैं … ...

प्रभु कहते हैं , हे अर्जुन ! मेरा परा भक्त कामना रहित होता है और मुझ को तत्त्व से समझता है //

परा भक्त कौन होता है ?

परा भक्त बाहर – बाहर से ऐसा दिखता है जैसे किसी मंदिर की मूरत हो / वह लोगों के लिए

इस संसार मे होता है लेकिन अपनें लिए उका निवास प्रभु में होता है /

परा भक्त वह है------

जिसके पीठ पीछे भोग होता है,उसके नैनों में प्रभु बसे होते हैं और उसके दिल की

हर धडकन में प्रभु ही प्रभु होते हैं//

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी/

यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने: //

गीता 2.69

=====ओम====

=====ओम====




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