सृष्टि , लिङ्ग सृष्टि और लिङ्ग शरीर रहस्य⬇️
⚛️ जैन धर्म के अनुसार “अप्पा सो परमप्पा “, अर्थात आत्मा ही परमात्मा है।
☸️ बुद्ध कहते हैं , " अप्प दीपो भव " अर्थात स्वयं दीप बन बनो ।
✡️ आत्मा जब तक राग - द्वेष के रंग से रंगा है , तब तक आत्मा कहलाता है और जब राग - द्वेष के विकारों से मुक्त हो जाता है , तब वह परमात्मा कहलाता है।
यही परमात्मा अवस्था है, यही तीर्थंकर अवस्था है और यही ईश्वरत्व है। जैन दर्शन में भगवान अरिहंत ( केवली ) और सिद्ध ( मुक्त आत्माएं ) को कहते हैं ।
हर आत्मा का स्वभाव भगवंता है और हर आत्मा में अनंत दर्शन , अनंत शक्ति , अनंत ज्ञान और अनंत सुख है । सम्यक दर्शन , सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र के माध्यम से आत्मा के मौलिक स्वभाव को प्राप्त किया जाता है ।
कर्म प्रकृति के मौलिक कण होते हैं । जो कर्मों का हनन कर केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया है , उन्हें अरिहंत कहते हैं । तीर्थंकर विशेष अरिहंत होते हैं । जैन दर्शन में ज्ञान से अभिप्राय सम्यक् ज्ञान से है और यही प्रमाण है। जिस प्रकार से जीव एवं अजीव पदार्थ अवस्थित हैं, उस प्रकार से उसको जानना सम्यक् ज्ञान है।
अब भारतीय दर्शनों में आत्मा , परमात्मा और मोक्ष की मान्यताओं के सम्बन्ध में निम्न स्लाइड को देखें ⬇️
नीचे दी गयी तालिका में ब्रह्मसूत्र , श्रीमद्भागवत पुराण , गीता , और सांख्य दर्शन के आधार पर लिङ्ग शरीर की रचना को दिखाया जा रहा है ⬇️
ऊपर तालिका में सांख्य को छोड़ कर शेष सभीं वेदांत दर्शन से सम्बंधित हैं ।
ब्रह्म सूत्र में लिङ्ग शरीर
वेदांत दर्शन में ब्रह्म सूत्र , उपनिषद् और श्रीमद्भगवद्गीता को प्रस्थान त्रयी कहते हैं ; ये तीन वेदांत दर्शन के स्तंभ हैं ।
ऐसा समझा जाता है कि बादरायण ब्रह्म सूत्र के रचनाकार हैं । ब्रह्म सूत्र अध्याय - 4 ,पाद - 1 सूत्र - 2 लिंगाच्च है । लिङ्ग का अर्थ है चिन्ह या प्रमाण । वेदों और वेदांत में लिङ्ग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आया है । सूक्ष्म शरीर के 17 तत्त्व हैं । शतपथ ब्राह्मण 5 - 2 - 2 - 3 में इन 17 तत्त्वों को सप्तदश प्रजापति कहा गया है ।
ब्रह्म सूत्र में लिङ्ग शरीर के 17 तत्त्व निम्न हैं 👇
>11 इन्द्रियाँ
>01 बुद्धि , और
> 05 वायु ( प्राण , अपान , व्यान , उदान , समान )
05 प्राणों के निवास स्थान ⬇️
➡️प्राण नाक के अगले भाग में रहता है
➡️ अपान गुदा में रहता है
➡️ व्यान सम्पूर्ण शरीर में रहता है
➡️ उदान गले में रहता है
➡️ समान भोजन पचाता है
🕉️ हिन्दू मान्यता में लिङ्ग पूजन प्रभु के प्रमाण स्वरूप सूक्ष्म शरीर का पूजन है ।
श्रीमद्भागवत पुराण में लिङ्ग शरीर
<> भागवत : 11.22.36 <>
◆ मन कर्म संस्कारों का पुंज है ।
◆ उन संस्कारों के अनुसार भोग प्राप्ति के लिए मन के साथ 05 इन्द्रियाँ भी लगी हुई
हैं और मन सहित 05 ज्ञान इंद्रियों के समुदाय को लिङ्ग शरीर कहते हैं ।
श्रीमद्भगवद्गीता में लिङ्ग शरीर
गीता : 8.5 +8.6 + 15.8
☸️ जो अंतकाल में मुझे स्मरण करता हुआ शरीर त्यागता है , वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है ।
☸️ शरीर त्याग के समय जो गहरा भाव होता है , उसके अनुसार वैसी ही योनि मिलती है ।
☸️ जैसे वायु गंध को ग्रहण करके अपने साथ ले जाता है वैसे ही जीवात्मा शरीर त्याग के समय अपने साथ मन सहित इंद्रियों को ग्रहण करके अगला शरीर धारण करता है ।
सांख्य दर्शन में लिङ्ग शरीर
लिङ्ग शरीर सम्बंधित सांख्य कारिकाएँ
कारिका : 39 - 43
कारिका - 39
विशेष क्या हैं ?
👉सूक्ष्म शरीर , माता - पितासे मिला शरीर और
प्रभूत ( सुख , दुःख और मोह ) , ये 03 प्रकारके विशेष हैं ।
☝️ इन तीनोंमें जो सूक्ष्म है अर्थात सूक्ष्म शरीर ,नित्य है और जन्मसे मिला शरीर अनित्य है अर्थात नष्ट हो जाता है ।
सांख्य कारिका : 40
सूक्ष्म लिङ्ग शरीर
💐 सूक्ष्म ( लिङ्ग ) शरीर सबसे पूर्व में उत्पन्न अनासक्त , नित्य , महत् से ले कर सूक्ष्म तन्मात्रों तक बिना कुछ उपभोग किये धर्म आदि
08 भावों से अधिवासित (सुगन्धित ) है तथा संसरण (एक जन्मसे दूसरे जन्म में जाना ) करता रहता है ।
ऊपर कही गयी बातों का सार ⬇️
1 - लिङ्ग शरीर के माध्यम से आवागमन है ..
2 - यह 08 भावों से युक्त रहता है ..
3 - यह निर्मल और नित्य है
लिङ्ग शरीर के संबंध में यहाँ सूत्र : 40 को देखने के बाद महत् से सूक्ष्म तन्मात्रों तक के तत्त्वों को और 08 भावों को समझने के लिए सांख्य के निम्न सिद्धांत को देखना चाहिए 👇
पुरुष ऊर्जा से जब प्रकृति विकृत होती है तब ⤵️
पहले महत् ( बुद्धि ) की उत्पत्ति होती है । बुद्धि से अहँकार की उत्पत्ति होती है । गुणों के आधार पर अहँकार 03 प्रकार का
है ।
सात्त्विक अहँकार से 11 इंद्रियों की उत्पत्ति होती है ।
तामस अहँकार से 05 तन्मात्रों की उत्पत्ति होती है और तन्मात्रों से पञ्च महाभूतों की उत्पत्ति होती है ।
ऊपर व्यक्त सिद्धांत सांख्य कारिका : 3 + 22 में दिए गए हैं जो निम्न प्रकार हैं ⤵️
➡️ 08 भाव निम्न हैं
भाव सम्बंधित सांख्य कारिका : 44 और 45 के आधार पर निम्न 08 भाव हैं ⬇️
1 - धर्म 2 - अधर्म 3 - ज्ञान 4 - अज्ञान
5 - वैराग्य 6 - राग 7 - ऐश्वर्य 8 - अनैश्वर्य
👌अब लिङ्ग सृष्टि को समझते हैं
लिङ्ग सृष्टि सम्बंधित सांख्य कारिका
52 - 54 , 56 - 58
अब इन कारिकाओं को देखते हैं ⬇️
सांख्यकारिका : 52
द्विविधि सर्ग अर्थात दो प्रकार की सृष्टि अर्थात
1 - भाव सृष्टि और 2 - लिङ्ग सृष्टि से संबंधित कारिका - 52 है जिसका भावार्थ निम्न प्रकार है 👇
💐 भाव सृष्टि के बिना लिङ्ग सृष्टि के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती और ⤵
💐 लिङ्ग सृष्टि के बिना भाव सृष्टि की निष्पत्ति नहीं हो सकती ।
👌 भाव सृष्टि और लिङ्ग सृष्टि (भौतिक सर्ग ) क्या हैं ? इस प्रश्न का उत्तर आगे देखें ⬇️
👉 लिङ्ग सृष्टि में 05 तन्मात्र आते हैं जिनसे 05 महाभूतों की उत्पत्ति होती है ।
◆ भाव सृष्टि ( सर्ग ) में बुद्धि , तीन अहँकार और 11 इन्द्रियाँ आती हैं ।
👉 भाव सर्ग ( सृष्टि ) को प्रत्यय या बुद्धि सृष्टि भी कहते हैं ।
☝ प्रत्यय या बुद्धि के लिए कारिका : 46 + 47 को भी देखे जहाँ बताया गया हैं 👇
● बुद्धि के 04 प्रकार 👇
विपर्यय + अशक्ति + तुष्टि + सिद्धि
1 - विपर्यय (विपरीत समझना )यह 05 प्रकार की है ।
2 - अशक्ति (दुर्बलता )यह 28 प्रकार की है ।
3 - तुष्टि (संतोष ) के प्रकार 👇
4 आध्यात्मिक + 8 बाह्य अर्थात तुष्टि 12 प्रकार की है ।
4 - सिद्धि
पतंजलि विभूति पाद सूत्र : 16 - 49 में 45प्रकार की सिद्धियां बताई गई हैं ।
भागवत ( 11.15 > प्रभु श्री कृष्ण - उद्धव वार्ता ) में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं , " धरणायोग के परगामी योगियों द्वारा 18 प्रकार की सिद्धियां बताई गई हैं । इन में सारः पहली 08 सिद्धियां हर पल मेरे संग रहती हैं और वे निम्न हैं ।
★ कुल मिला कर 53 प्रकार की बुद्धि होती है । बुद्धि के प्रकार को निम्न तालिका में देखें⬇️
लिङ्ग सृष्टि के लिए अगली कारिका : 53 देखें ⬇️
सांख्य कारिका : 53
भौतिक सर्ग या लिङ्ग सृष्टि
💐 मुख्यरूप से भौतिक (लिङ्ग )सृष्टि
( सर्ग ) निम्न 03 प्रकार की है ⬇️
1- दैव , 2 - तैर्यम्योन और 3 - मनुष्य
1 - दैवी सृष्टि 08 प्रकट की है
2 - तैर्यम्योन सृष्टि 05 प्रकार की है
3 - मनुष्य - सृष्टि एक प्रकार की है ।
कुल मिला कर भौतिक ( लिङ्ग ) सृष्टि 14 प्रकारकी है
1 - दैव सृष्टि के अंतर्गत ब्रह्मा ,प्रजापत्य , सौम्य , इंद्र , गांधर्व , यक्ष , राक्षस और पिशाच आदि आते हैं ।
2 - तिर्यक सृष्टि के अंतर्गत पशु , पक्षी , सरीसृप और स्थावर आदि आते हैं ।
सांख्य कारिका : 54
सृष्टि (सर्ग ) की गुण अनुसार स्थिति
👉ब्रह्मा आदि सर्ग सत्त्व गुण प्रधान हैं , लेकिन अन्य दो गुण भी इनमें होते हैं ।
👉पशु - पक्षी आदि सर्ग तामस गुण प्रधान हैं लेकिन अन्य दो गुण भी होते हैं
👉और मनुष्य सर्ग राजस गुण प्रधान है ।
👉सब में होते तो 03 गुण ही हैं लेकिन एक समय में सक्रियता केवल एक ही गुण की होती है । किसी जीव में एक समय पर एक से अधिक गुण सक्रिय नहीं होते ।
👌यहाँ देखिये गीता श्लोक : 14.10 ⬇
रजः तमः च अभिभूय सत्तम् भवति भारत ।
रजः सत्त्वम् तमः च एव तमः सत्त्वं रजः तथा ।।
अर्थात रजो - तमो गुणों को दबाकर सत्त्वगुण , सत्त्व गुण - तमोगुण को दबाकर रजोगुण वैसे ही सत्त्वगुण - रजोगुण को दबाकर तमोगुण प्रभावी होता है ।
श्रीमद्भागवत पुराण आधारित सृष्टि रहस्य ⬇️
विदुर - ऋषि मैत्रेय वार्ताके अंतर्गत
भागवत : 3.10 में 10 प्रकार की सृष्टि⬇️
●पहली सृष्टि : महत्तत्त्व
● दूसरी सृष्टि : अहंकार
(सात्त्विक , राजस और तामस )
● तीसरी सृष्टि
भूत सर्ग अर्थात तन्मात्र जिनसे महाभतों की उत्पत्ति होती है
● चौथी सृष्टि : 10 इंद्रियाँ
◆ पांचवी सृष्टि
सात्त्विक अहंकार से मन एवं इन्द्रिय अधिष्ठातृ देवता
◆ छठी सृष्टि : अविद्या
अविद्या की 05 गांठे हैं ⤵️
तामिस्र ( द्वेष ) , अंध तामिस्र (अभिनिवेष ) , तम ,
मोह ( अस्मिता ) , महामोह ( राग )
🖕ये 06 सृष्टियाँ प्राकृत सृष्टियाँ कहलाती हैं ..
सातवी सृष्टि
निम्न 06 प्रकार के स्थावर ( वृक्ष )
1 - वनस्पति
(बिना मौर आये ही फल देते हैं जैसे गूलर )
2 - ओषधि
जो फल पकने के साथ नष्ट हो जाते हैं जैसे धान आदि
3 - लता
जिनको आश्रय चाहिए बढ़ने के लिए
4 - त्वकसार
कठोर छाल वाले जैसे बास
5 - वीरुध
खरबूजा , तरबूज आदि जैसी लताये जिनका तन कठोर होता है
6 - द्रुम
फूल से फल जिनमे लगते हैं जैसे आम आदि
आठवी सृष्टि
तिर्यक योनियाँ जैसे पशु , पक्षी । यह 28 प्रकार की है।
नौवीं सृष्टि मनुष्य
इनमें आहार ऊपर से नीचे की ओर चलता है ।
10 वीं सृष्टि देव सृष्टि
यह निम्न 08 प्रकार की है ⬇️
1 - देवता , 2 - पितर , 3 - असुर ,
4 - गंधर्व - अप्सरा , 5 - यक्ष - राक्षस ,
6 - सिद्ध - चारण - विद्याधर
7 - भूत - प्रेत - पिशाच
8 - किन्नर - किंपुरुष - अश्वमुख
कारिका - 56 :सृष्टि का निमित्त
👉 " इस प्रकार प्रकृति निर्मित महत् से लेकर पंच महाभतों तक की सृष्टि ( सर्ग ) , पुरुष मोक्ष के साधन हैं "
👌यह प्रकृतिका स्वार्थ नहीं है तथापि वह स्वार्थ की तरह ही परार्थ के कार्य भी करती है । प्रकृति जड़ है और पृरुष चेतन । प्रकृति पृरुष को देखना चाहती है और पुरुष प्रकृति को जानना चाहता है । पुरुष प्रकृति के पिजड़े में कैद हो जाता है और प्रकृति उसे उसके मूल स्वरूप में लौटा देना चाहती है । प्रकृति का यही परार्थ है ।
कारिका - 57 + 58
पुरुष मोक्षका माध्यम , प्रकृति है
👉 " जैसे अचेतन दूध , चेतन बछड़े का निमित्त होता है उसी तरह अचेतन प्रकृति , चेतन पुरुष के मोक्ष की हेतु है "
👉जैसे लोग अपनी - अपनी उत्सुकताओं को पूरा करने हेतु अलग -अलग क्रियाओं में प्रवृत्त होते हैं वैसे ही पुरुष मोक्ष के लिए प्रकृति भी प्रवृत्त रहती है ।
पुरुष मोक्ष ही प्रकृति का मूल लक्ष्य है
पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 44 - 45
सूक्ष्म आलंबनसे सविचार - निर्विचार समापत्ति
सूत्रोंकी रचना को पहले देखते….
सूत्र : 44 >सविचारा निर्विचारा च सूक्ष्म बिषया
सूत्र : 45 > सूक्ष्म विषय त्वं च अलिङ्ग पर्य वसानम्
दोनों सूत्रों का भावार्थ 👇
➡️जैसे सूत्र : 42 - 43 में निर्विकल्प समापत्तिको देखा , वैसे ही अब सूक्ष्म आलंबनों पर सविचार - निर्विचार समापत्तिको देखें।
सूक्ष्म आलंबन के साथ सविचार - निर्विचार समापत्ति होती है ।
यह अलिंगके बाद तक रहती है ।
अलिङ्ग क्या है ?
प्रकृतिके गुणोंकी साम्यावस्थाको अलिङ्ग कहते हैं । अर्थात वह योगी जिसे सविचार - निर्विचार समापत्ति सिद्ध होती हैं , वह गुणातीत होता है ।
साधन पाद - 19 में महर्षि प्रकृति को निम्न 04 भागों में विभक्त करते हैं 👇
विशेष , अविशेष , लिङ्ग और अलिङ्ग
और साथ में यह भी कह रहे हैं कि यह विभाजन गुण
आधारित है । अब 04 प्रकार की प्रकृति को समझते हैं 👇
1 - विशेष : 11 इन्द्रियों को विशेष वर्ग में रखा गया है ।
2 - अविशेष - 05 तन्मात्र और अहंकार को अविशेष वर्ग में देखते हैं।
3 - लिङ्ग : महत् ( बुद्धि ) को लिङ्ग कहते हैं ; लिङ्ग अर्थात
चिन्ह । बुद्धि को विशेष - अविशेष के माध्यम से समझते हैं ।
4 - अलिङ्ग : अलिङ्ग मूल प्रकृति को कहते हैं ।
03 गुणों की साम्यावस्था को मूल प्रकृति कहते हैं ।
सांख्य कारिका : 55 > दुःख भोक्ता , पुरुष है
👉" जरा ( बुढापा ) , मरण ( मृत्यु ) आदि से उत्पन्न दुखों का भोक्ता पुरुष है ।
👌जबतक पुरुष 24 तत्त्वों के बोध से लिंग शरीर से निवृत्त नहीं हो जाता तबतक वह दुःखों को भोगता रहता है "
सांख्य कारिका - 59 +60
प्रकृति , पुरुषके लिए उपकारिणी है
👉 " जैसे एक नर्तिकी नाना प्रकार के भावों - रसों से युक्त नृत्यको प्रस्तुत करके निवृत्त हो जाती है वैसे ही प्रकृति भी अपना प्रकाश पुरुष को दिखा कर निवृत्त हो जाती है "
👉 जैसे उपकारी व्यक्ति दूसरों पर उपकार करते हैं तथा अपने प्रत्युपकार की आशा नहीं रखते उसी तरह गुणवती प्रकृति भी अगुणी पुरुषके लिए उपकारिणी है और वह भी अपने प्रत्युपकार की आशा नहीं रखती ।
~~●● ॐ ●●~~
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