पतंजलि योगसूत्र समाधि पाद सार
● पतंजलि समाधि पाद में 51 सूत्र हैं ।
◆ पतंजलि योग दर्शन का सांख्य दर्शन , तत्त्व मीमांसा है।
● पतंजलि योग दर्शन सांख्य दर्शन का पूरक दर्शन है ।
● सांख्य मोक्ष का माध्यम तत्त्व ज्ञान को बताता है ।
● पातंजलि योग दर्शन सांख्य - तत्त्व ज्ञान प्राप्ति के
उपायों को बताता है ।
● सांख्य पुरुष को प्रकृति से मुक्त कराने का सिद्धांत देता है ।
● पतंजलि योगसूत्र पुरुष को प्रकृति से मुख्य कराने की
विधियों को बताता है ।
◆ सांख्य में 25 तत्त्व हैं ; प्रकृति - पुरुष और प्रकृति से उत्पन्न 23 तत्त्व ।
◆ पतंजलि योगसूत्र में भी यही सांख्य के 25 तत्त्व हैं
लेकिन पिरुष तत्त्व में पुरुष विशेष रूप में ईश्वर के
अस्तित्व को स्वीकारता है ।
● सांख्य 25 तत्त्वों के बोध को ज्ञान कहता है जिनमें ईश्वर शब्द नहीं है।
● पतंजलि योगसूत्र सांख्य ज्ञान प्राप्ति का मार्ग दिखता है ।
समाधि पाद के 51 सूत्रों का सार ⬇️
सूत्र : 1 - 3 > योग अनुशासन है । योग से चित्त की
वृत्तियों का निरोध होता है फलस्वरूप बिषयाकार चित्त
अपनें मूल स्वरूपनमें लौट आता है ।
सूत्र : 4 - 10 > चित्त की 05 वृत्तियों से सम्बंधित
◆ चित्त की निम्न 05 वृत्तियां हैं जो क्लिष्ट - अक्लिष्ट रूपों में होती हैं ।
प्रमाण , विपर्यय , विकल्प , निद्रा और स्मृति ।
सूत्र : 12 - 16 > अभ्यास - वैराग्य से चित्त वृत्ति निरोध होता है।
● चित्त - वृत्ति निरोध के लिए किये जाने वाले यत्न
अभ्यास कहलाते हैं ।
● पूर्ण समर्पण भाव से बिना किसी रुकावट निरंतर
अभ्यास से साधना की दृढ भूमि मिलरी है।
● भोग - वितृष्णा का भाव ही वैराग्य है ।
● सूत्र : 17 > सम्प्रज्ञात समाधि
● निम्न 04 प्रकार की सम्प्रज्ञात समाधि है ⬇️
वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता
सूत्र - 18 > अभ्यास से चित्त वृत्ति निरोध होने के बाद
वैराग्य घटित होता है लेकिन संस्कार अभीं भी शेष बक्सहे रहते हैं।
सूत्र - 19 > विदेह लय और प्रकृति लय योगी को वर्तमान में जन्म
केवल असम्प्रज्ञात समाधि सिद्धि के लिए मिलता है।
> सूत्र : 17 में बतायी गयी 04 प्रकार की सम्प्रज्ञात समाधि में से
पहली 03 समाधियों ( वितर्क , विचार और आनंद )
की सिद्धि प्राप्त योगी प्रकृतिलय योगी होता है और
अस्मिता की सिद्धि से वह विदेहलय योगी होता है।
सूत्र - 20 > कैवल्य प्राप्ति के 05 उपाय ⬇️
● श्रद्धा ● वीर्य ● स्मृति ● समाधि ● प्रज्ञा
अर्थात सात्त्विक श्रद्धा भाव में बसेरा होना ,
कठिन योगाभ्यास करना , दैवी स्मृति में
चित्त को ठहराना , निरंतर समाधी में रहना और
सत्य - असत्य को समझनेवाला बुद्धि को बनाये रखना।
सूत्र - 21 + सूत्र - 22
● साधकों की 03 श्रेणियां हैं ⬇️
> मृदु > मध्य > अधिमात्र ( तेज )
अर्थात धीमी गति , माध्यम गति और
तेज गति वाले साधक ।
तेज गति वाले शीघ्र सिद्धि पाते हैं।
सूत्र : 23 - 29 > ईश्वर प्रणिधान
ईश्वर समर्पण को ईश्वर प्रणिधान कहते हैं
ईश्वर् क्या है ?
● क्लेष , कर्म , कर्मफल और आश्रय रहित , ईश्वर है ।
● ईश्वर सर्वोत्तम ज्ञान वाला है , सभीं ज्ञानों के बीज ,
ईश्वर में हैं।
● ईश्वर काल से अप्रभावित है और पूर्व में हुए
सभीं गुरुओं का गुरु है।
◆ ईश्वर का संबोधन प्रणव है ।
● प्रवण का अर्थ समझते हुए ईश्वर को स्मरण करना चाहिए ।
ईश्वर समर्पण से चेतन का बोध होता है और साधना में
आनेवाली सारी रुकावटें दूर हो जाती हैं ।
सूत्र : 30 - 33 > योग साधना में आनेवाली बाधाएं
# कुल निम्न 14 बाधाएँ हैं #
1 - ब्याधि , 2 - स्तयान ( अकर्मण्यता ) , 3 - संशय , 4 - प्रमाद ( अरुचि )
5 - आलस्य , 6 - अविरति ( वैराग्य का अभाव ), 7 - भ्रान्ति दर्शन ,
8 - अलब्ध भूमित्व , 9 - अनवस्तितत्वानि
( ऊँची भूमियों पर देर तक न रुकना ) ,
10 - 03 प्रकार के दुःख दुःख , 11 - दौर्मनस्य
( बुरे भाव के कारण मिलने वाला दुःख )
12 - अंगमेजयत्व ( अंगों में कंपन ) ,
13 - श्वास , 14 - प्रश्वास
● एकाग्रता साधना से बाधाएँ दूर होती हैं
● 04 प्रकार की भावनाये हैं > मैत्री , करुणा , मुदिता , उपेक्षा
समाधि पाद सूत्र - 33 के साथ विभूति पाद - 23 देखें
समाधि पाद - 33 + विभूति पाद - 23
सुखी से मैत्री ( बलवान से मैत्री रखो - विभूति - 23 ) ,
दुखी से करुणा ,
पुण्यात्माओं की संगति , पापियों की उपेक्षा करो
समाधि पाद सूत्र : 34 - 39 तज चित्त शांत रखने के उपाय ⬇️
समाधि पाद : 12 - 16 में चित्त शांत रखने के उपाय के
लिए अभ्यासः - वैराग्य बताया गया और अब देखिये ⬇️
समाधि पाद - 34 - 39
● बाह्य कुम्भक प्राणायाम का अभ्यास करना
● स्थूल सात्त्विक आलंबन पर एकाग्रता साधना
● ज्योति आलंबन
● वीतराग विषय आलंबन
● स्वप्न / निद्रा को आलंबन बनाना
● स्वरुचि अनुसार कोई सात्त्विक आलंबन
समाधि सूत्र - 40
जिसको चित्त एकाग्रता की सिद्धि मिल जाती है वह एक
अणु से विशाल से विशाल वस्तु
पर चित्त को एकाग्र कर सकता है । चित्त का वह स्वामी
हो जाता है ।
● बृत्ति क्षीण होने पर चित्त एक पारदर्शी मणि जैसा हो जाता है
और ग्राह्य , ग्रहण और ग्रहिता में से जिस पर भी
चित्त एकाग्र होगा , उसका मूल स्वरूप उस पर उभड़ आता है ।
साधाधि सूत्र - 42 +43
सवितर्क - निर्वितर्क समापत्ति
सूत्र - 17 में वितर्क , विचार , आनंद और
अस्मिता - 04 प्रकार की सम्प्रज्ञात समाधि बतायी गयी
अब समापत्ति बतायी जा रही हैं ।
<> एकाग्रता साधना के आलंबन के 03 अंग होते हैं ⬇️
शब्द , अर्थ और ज्ञान
शब्द स्थूल आलंबन की अवस्था होती है
जैसे उसका नाम , या स्थूल आकार ,
जिस पर एकाग्रता की जाती है , ।
उसी आलंबन के अर्थ पर मन द्वारा एकाग्रता साधी जाती है , यह सूक्ष आलंबना का अंग है।
आलंबना के शब्दार्थ पर एकाग्रता निर्मल बुद्धि आधारित होती है
जिसका सम्बन्ध ज्ञान से होता है।
शब्द , अर्थ और ज्ञान के भ्रम में जो एकाग्रता की
जाती है वह सवितर्क समापत्ति कहलाती है ।
समाधि सूत्र : 44 + 45
सविचार - निर्विचार समापत्ति
● सविकल्प - निर्विकल्प स्थूल आलंबन
आधारित समापत्ति थी अब सूक्ष्म आलंबन पर
उसी तरह सविचार - निर्विचार समापत्ति को
समझना चाहिए । सविचार - निर्विचार समापत्ति
अलिङ्ग अवस्था तक रहती है ।
प्रकृति के तीन गुणों की साम्यावस्था को अलिङ्ग कहते हैं
अर्थात गुणातीत की अवस्था ।
यहाँ साधन पाद सूत्र - 19 देखें जहाँ विशेष ,
अविशेष , लिङ्ग और अलिङ्ग को बताया गया है ⬇️
# 11 इंद्रियों को विशेष , 05 तन्मात्र और अहँकार को
अविशेष , महत् ( बुद्धि ) को लिङ्ग और मूल प्रकृति
को अलिङ्ग कहते हैं ।
समाधि पाद : 46 - 47
सम्प्रज्ञात समाधि
● अभी तक जो देखा गया उसका सम्बन्ध
सबीज समाधि ( सम्प्रज्ञात समाधि ) से है।
● निर्विचार समापत्ति सिद्धि से आध्यात्मिक शांति तो
मिलती है पर यह भी आलंबन आधारित ही होती है ।
समाधि पाद 48 - 49
● ऋतंभरा प्रज्ञा , सम्प्रज्ञात समाधि का फल है
● चित्त राजस - तामस गुणों की वृत्तियों से मुक्त हो जाता है
और सात्त्विक गुण की वृत्तियॉं से भर जाता है ।
● सात्त्विक गुणों की बृत्तियाँ श्रुति - अनुमान आधारित
होने से परोक्ष ज्ञान तक ही सीमित रहती हैं ।
समाधि सूत्र : 50 - 51
● यह परोक्ष ज्ञान राजस - तामस गुणों की
वृत्तियों से मुक्त तो कर देता हैं जो संस्कार आधारित होती हैं ।
● जब सात्त्विक संस्कार भी निर्मूल हो जाते हैं
तब निर्बीज समाधि घटित होती है
और देह में स्थित पुरुष अपने मूल स्वरुप में
आ जाता है ।
~~◆◆ ॐ ◆◆~~
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