Tuesday, October 26, 2021

पतंजलि समाधि पाद सार हिंदी में

 

पतंजलि योगसूत्र समाधि पाद सार

● पतंजलि समाधि पाद में  51 सूत्र हैं ।

◆ पतंजलि योग दर्शन का सांख्य दर्शन , तत्त्व मीमांसा है।

● पतंजलि योग दर्शन सांख्य दर्शन का पूरक दर्शन है ।

● सांख्य मोक्ष का माध्यम तत्त्व ज्ञान को बताता है ।

● पातंजलि योग दर्शन सांख्य - तत्त्व ज्ञान प्राप्ति के 

उपायों को बताता है ।

● सांख्य पुरुष को प्रकृति से मुक्त कराने का सिद्धांत देता है ।

● पतंजलि योगसूत्र पुरुष को प्रकृति से मुख्य कराने की

 विधियों को बताता है ।

◆ सांख्य में 25 तत्त्व हैं ; प्रकृति - पुरुष और प्रकृति से उत्पन्न 23 तत्त्व ।

◆ पतंजलि योगसूत्र में भी यही सांख्य के 25 तत्त्व हैं

 लेकिन पिरुष तत्त्व में पुरुष विशेष रूप में ईश्वर के

 अस्तित्व को स्वीकारता है ।

● सांख्य 25 तत्त्वों के बोध को ज्ञान कहता है जिनमें ईश्वर शब्द नहीं है।

● पतंजलि योगसूत्र सांख्य ज्ञान प्राप्ति का मार्ग दिखता है ।

समाधि पाद के 51 सूत्रों का सार ⬇️

सूत्र : 1 - 3 > योग अनुशासन है । योग से  चित्त की 

वृत्तियों का निरोध होता है फलस्वरूप बिषयाकार चित्त 

अपनें मूल स्वरूपनमें लौट आता है ।

सूत्र : 4 -  10 > चित्त की 05 वृत्तियों से सम्बंधित

◆ चित्त की निम्न 05 वृत्तियां हैं जो क्लिष्ट - अक्लिष्ट रूपों में होती हैं ।

 प्रमाण , विपर्यय , विकल्प , निद्रा और स्मृति  ।

सूत्र : 12 - 16 > अभ्यास - वैराग्य  से  चित्त वृत्ति निरोध होता है।

●  चित्त - वृत्ति निरोध के लिए किये जाने वाले यत्न 

अभ्यास कहलाते हैं ।

● पूर्ण समर्पण भाव से बिना किसी रुकावट निरंतर 

अभ्यास से साधना की दृढ भूमि मिलरी है।

●  भोग -  वितृष्णा  का भाव ही वैराग्य है ।


● सूत्र : 17  > सम्प्रज्ञात समाधि

● निम्न 04 प्रकार की सम्प्रज्ञात समाधि है ⬇️

वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता  

सूत्र - 18 > अभ्यास से चित्त वृत्ति निरोध होने के बाद

 वैराग्य घटित होता है लेकिन संस्कार अभीं भी शेष बक्सहे रहते हैं।

सूत्र - 19 > विदेह लय और  प्रकृति लय योगी को वर्तमान में जन्म

 केवल असम्प्रज्ञात समाधि सिद्धि के लिए मिलता है।

> सूत्र : 17 में बतायी गयी 04 प्रकार की सम्प्रज्ञात समाधि में से

पहली 03 समाधियों (  वितर्क , विचार और आनंद ) 

की सिद्धि प्राप्त योगी प्रकृतिलय योगी होता है और 

अस्मिता की सिद्धि से वह विदेहलय योगी होता है।

सूत्र - 20 > कैवल्य प्राप्ति के 05 उपाय ⬇️

● श्रद्धा ● वीर्य ● स्मृति ● समाधि ● प्रज्ञा

अर्थात सात्त्विक श्रद्धा भाव में बसेरा होना , 

कठिन योगाभ्यास करना , दैवी स्मृति में 

चित्त को ठहराना ,  निरंतर समाधी में रहना और

 सत्य - असत्य को समझनेवाला बुद्धि को बनाये रखना।

सूत्र - 21 + सूत्र - 22

● साधकों की 03 श्रेणियां हैं ⬇️

> मृदु > मध्य > अधिमात्र ( तेज )

अर्थात धीमी गति , माध्यम गति और 

तेज गति वाले साधक । 

तेज गति वाले शीघ्र सिद्धि पाते हैं।

सूत्र : 23 - 29 > ईश्वर प्रणिधान

ईश्वर समर्पण को ईश्वर प्रणिधान कहते हैं 

ईश्वर् क्या है ?

● क्लेष , कर्म , कर्मफल और आश्रय रहित , ईश्वर है ।

● ईश्वर सर्वोत्तम ज्ञान वाला है , सभीं ज्ञानों के बीज ,

 ईश्वर में हैं।

●  ईश्वर काल से अप्रभावित है और पूर्व में हुए

सभीं गुरुओं का गुरु है।

◆ ईश्वर का संबोधन प्रणव  है ।

● प्रवण का अर्थ समझते हुए ईश्वर को स्मरण करना चाहिए ।

ईश्वर समर्पण से चेतन का बोध होता है और साधना में

 आनेवाली सारी रुकावटें दूर हो जाती हैं ।

सूत्र : 30 - 33 > योग साधना में आनेवाली बाधाएं 

# कुल निम्न 14 बाधाएँ हैं #

1 - ब्याधि , 2 - स्तयान ( अकर्मण्यता ) , 3 - संशय , 4 -  प्रमाद ( अरुचि )

5 -  आलस्य , 6 - अविरति ( वैराग्य का अभाव ), 7 - भ्रान्ति दर्शन , 

8 - अलब्ध भूमित्व , 9 - अनवस्तितत्वानि 

( ऊँची भूमियों पर देर तक न रुकना ) , 

10 -  03 प्रकार के दुःख दुःख , 11 - दौर्मनस्य

 ( बुरे भाव के कारण मिलने वाला दुःख ) 

 12 - अंगमेजयत्व  ( अंगों में कंपन ) , 

13 - श्वास , 14 - प्रश्वास 


●  एकाग्रता साधना से बाधाएँ दूर होती हैं 

● 04 प्रकार की भावनाये हैं > मैत्री , करुणा , मुदिता , उपेक्षा

समाधि पाद सूत्र -  33 के साथ विभूति पाद - 23 देखें 

समाधि पाद - 33 + विभूति पाद - 23 

सुखी से मैत्री ( बलवान  से मैत्री रखो - विभूति - 23  ) , 

दुखी से करुणा , 

पुण्यात्माओं की संगति , पापियों की उपेक्षा करो 

समाधि पाद सूत्र : 34 - 39 तज चित्त शांत रखने के उपाय ⬇️

समाधि पाद : 12 - 16 में चित्त शांत रखने के उपाय के

 लिए अभ्यासः - वैराग्य बताया गया और अब देखिये ⬇️


समाधि पाद - 34 - 39 

● बाह्य कुम्भक प्राणायाम का अभ्यास करना

● स्थूल सात्त्विक आलंबन पर एकाग्रता साधना 

● ज्योति आलंबन

● वीतराग विषय आलंबन

● स्वप्न / निद्रा को आलंबन बनाना

● स्वरुचि अनुसार कोई सात्त्विक आलंबन

समाधि सूत्र - 40

जिसको चित्त एकाग्रता की सिद्धि मिल जाती है वह एक

अणु से विशाल से विशाल वस्तु

पर चित्त को एकाग्र कर सकता है । चित्त का वह स्वामी

 हो जाता है ।

●  बृत्ति क्षीण होने पर चित्त एक पारदर्शी मणि जैसा हो जाता है 

और ग्राह्य , ग्रहण और ग्रहिता में से जिस पर भी 

चित्त एकाग्र होगा , उसका मूल स्वरूप उस पर उभड़ आता है ।

साधाधि सूत्र - 42 +43

सवितर्क - निर्वितर्क समापत्ति

सूत्र -  17 में वितर्क , विचार , आनंद और 

अस्मिता - 04 प्रकार की सम्प्रज्ञात समाधि बतायी गयी

 अब समापत्ति बतायी जा रही हैं ।

<>  एकाग्रता साधना के आलंबन के 03 अंग होते हैं ⬇️

 शब्द , अर्थ और ज्ञान

शब्द स्थूल आलंबन की अवस्था होती है 

जैसे उसका नाम , या स्थूल आकार ,

जिस पर एकाग्रता की जाती है , ।

उसी आलंबन के अर्थ पर मन द्वारा एकाग्रता साधी जाती है , यह सूक्ष आलंबना का अंग है।

आलंबना के शब्दार्थ  पर एकाग्रता निर्मल बुद्धि आधारित होती है  

जिसका सम्बन्ध ज्ञान से होता है।

शब्द , अर्थ और ज्ञान के भ्रम में जो एकाग्रता की

जाती है वह सवितर्क समापत्ति कहलाती है ।

समाधि सूत्र : 44 + 45

सविचार - निर्विचार समापत्ति

●  सविकल्प - निर्विकल्प स्थूल आलंबन

आधारित समापत्ति थी अब सूक्ष्म आलंबन पर

 उसी तरह सविचार - निर्विचार समापत्ति को 

समझना चाहिए । सविचार - निर्विचार समापत्ति

 अलिङ्ग अवस्था तक रहती है ।

प्रकृति के तीन गुणों की साम्यावस्था को अलिङ्ग कहते हैं 

अर्थात गुणातीत की अवस्था ।

यहाँ  साधन पाद सूत्र - 19 देखें जहाँ विशेष ,

 अविशेष , लिङ्ग और अलिङ्ग को बताया गया है ⬇️

# 11 इंद्रियों को विशेष , 05 तन्मात्र और अहँकार को

अविशेष , महत् ( बुद्धि ) को लिङ्ग और मूल प्रकृति 

को अलिङ्ग कहते हैं ।

समाधि पाद : 46 - 47

सम्प्रज्ञात समाधि

● अभी तक जो देखा गया उसका सम्बन्ध 

सबीज समाधि ( सम्प्रज्ञात समाधि ) से है।

● निर्विचार समापत्ति सिद्धि से आध्यात्मिक शांति तो 

मिलती है पर यह भी आलंबन आधारित ही होती है ।

समाधि पाद 48 - 49

● ऋतंभरा प्रज्ञा , सम्प्रज्ञात समाधि का फल है 

● चित्त राजस - तामस गुणों की वृत्तियों  से मुक्त हो जाता है

 और सात्त्विक गुण की वृत्तियॉं से भर जाता है ।

● सात्त्विक गुणों की बृत्तियाँ श्रुति - अनुमान  आधारित

होने से परोक्ष ज्ञान तक ही सीमित रहती हैं ।

समाधि सूत्र : 50 - 51

● यह परोक्ष ज्ञान राजस - तामस गुणों की

 वृत्तियों से मुक्त तो कर देता हैं जो संस्कार आधारित होती हैं ।

● जब सात्त्विक संस्कार भी निर्मूल हो जाते हैं

 तब निर्बीज समाधि घटित होती है 

और देह में स्थित पुरुष अपने मूल स्वरुप में

आ जाता है ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~

No comments:

Post a Comment

Followers