Sunday, January 2, 2011

गीता अध्याय - 02




भाग - 18

गीता श्लोक - 18.48
यह श्लोक यहाँ गीता श्लोक - 2.47 के सन्दर्भ में दिया जा रहा है ॥
गीता कह रहा है ----
जैसे बिना धुआं अग्नि का होना संभव नहीं
वैसे बिना दोष कर्म का होना भी संभव नहीं ,
लेकीन सहज कर्मों को करते रहना चाहिए ॥
One can,t give up work suited to one,s nature .
It is not possible to have a work which is free
from defects as a fire can,t be without smoke
similarily work without defect can,t be .

दोष रहित कर्म क्यों नहीं हो सकता ?
गीता यहाँ कह रहा है की बिना दोष कर्म का होना संभव नहीं और यह भी कहता है .....
कर्म एक योग में उतरनें का सहज माध्यम भी है ,
फिर ऐसी स्थिति मेंक्या किया जाए ?
कर्म होता है - गुण - ऊर्जा से और .....
गुण ऊर्जा दोष रहित हो नहीं सकती , अतः ....
कर्म भी दोष रहित नहीं हो सकते लेकीन ....
सहज कर्मों में गुण तत्वों की साधना ....
भोग कर्म को योग में बदल कर ....
प्रभु से परिपूर्ण कर देती है ॥
कर्म सभी जीवों के साथ जन्म से जुड़े हुए हैं
लेकीन मनुष्य कर्म में अकर्म और
अकर्म में कर्म देखनें की ऊर्जा पैदा कर सकता है
जबकि ...
अन्य जीवों में यह क्षमता शून्य है ॥
जिस दिन , जिस घड़ी कर्म में अकर्म दिखनें लगता है ....
उस घड़ी वह ब्यक्ति साधारण ब्यक्ति न रह
कर प्रभु जैसा ही हो गया होता है ॥
धन्य होंगे ऐसे लोग ,
जो दुर्लभ लोग हैं ॥

==== ॐ ====















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