Tuesday, January 4, 2011

गीता अध्याय - 02



भाग - 19
गीता सूत्र - 2.47 के सन्दर्भ में कुछ और सूत्रों को देखते हैं :------
प्रकृते : क्रियमाणि गुनै : कर्माणि सर्वश : ।
अहंकारबीमूढात्मा करता अहम् इति मन्यते ॥

तत्त्वबित्तु महाबाहो गुणकर्मबिभागयो : ।
गुणा गुणेषु वर्तन्ते इति मत्वा न सज्जते ॥
गीता सूत्र - 3.27 और 3.28

पहला सूत्र कह रहा है -------
कर्म करनें वाले तो तीन गुण हैं लेकीन अहंकार के सम्मोहन में आकर हम स्वयं को करता समझते हैं ।
और ...
दूसरा सूत्र कह रहा है ----
वेदों में गुण - बिभाग और कर्म बिभाग का उल्लेख है ;
तीन गुणों के नित परिवर्तन के कारण मनुष्य कर्म करता रहा है ।

लोगों की बातें तो आप सुनते ही होंगे ;
जब कोई ठीक ठाक काम हो जाता है ,
जहां लोगों की प्रशंसा बरसती होती है ,
वहाँ हम स्वयं करता होते हैं और जहां तबाही ही तबाही हो रही हो
वहाँ का करता प्रभु होता है ; ऐसा समझो की ---------
प्रभु कोई बहुत बड़ा कचडा डालनें वाला बिन हो ,
अब यह सोचनें की बात है की .......
जब प्रभु के सम्बन्ध में हमारी यह राय है तो प्रभु हमें किस नज़रिए से देखते होंगे ?
क्या हम कभी इस बात पर सोचते भी हैं ?
प्रभु कहते हैं .....
सुख - दुःख , करता भाव और कर्म की रचना मैं नहीं करता , यह सब स्वभावतः हैं ॥

गीता से आप जुड़े रहिये .....
आये दिन एक सूत्र को अपनाते रहिये .....
और यह आप की आदत ......
आप को बुद्धि - योगी श्री कृष्ण से .....
एक दिन ...
मिला ही देगी ॥

=== ॐ =====

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